कवितालयबद्ध कविता
अर्जुन बन उड़ती चिड़िया की आँख भेदकर दिखाओ ना।
इतने ही बड़े हो तो दिल बड़ा करके बताओ ना।
गांठ के बाद गांठ पड़ी हुई है इन दिलों में
तुम सच के दामन से झूठ के दाग हटाओ ना।
समाज को समाज में ही छोड़ दो जरा तुम
जितनी चादर उतने ही पैर अपने फैलाओ ना।
देखा देखी नकल करते हो मेरी पागल हो तुम
दम है तो अच्छा उदाहरण सबके लिए बन जाओ ना।
बुरी और अच्छी बातों को तो अखबार भी जगह देता है।
तुम अपने ही दिल में अपनी जगह बनाओ ना।
लोग कहने लगे है थोड़ा समय अपने साथ बिताओ
तुम जरा सा मुझे पिंजरे से आजाद कर बताओ ना।
नन्ही सी नेहा से बड़ी हो गयी हूँ मैं
मुझे भी आत्मनिर्भर वाला पाठ अब पढ़ाओ ना।
इस अबला नारी वाले नारे से आज़ादी दिलाओ ना
मुझे आज में जीना सिखाओ ना। - नेहा शर्मा
सुंदर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं। आशा है जल्दी ही आपकी और भी रचनाएँ पढने को मिलेंगी यहां