कविताअन्य
मैं क्या लिखूं इस वंदना में सोच रही हूँ।
क्या कहूँ तुझसे ये खोज रही हूँ।
मेरे बिन कहे तू मेरे दिल की हर बात समझ लेता है।
मांगती तो दुनिया है तुझसे मेरा दिल तुझे खोज लेता है।
मैं कहूँ अगर मेरी कलम को तू धार दे।
इन पन्नों पर मेरा तन मन उतार दे।
पर मैं क्यों कहूँ जब मेरी कलम में तू बसता है।
हे ईश्वर तू मुझमें ही तो हँसता है।
देख खेल खेल रहा है तू अजब निराले मुझ संग।
लिखने बिठा दिया है अपने विषय में रंग।
पर कलम तेरे गुणगान नही गाती है।
नादान है ये तभी तो तुझ पर नही लिख पाती है।
मेरे होंठों पर तेरा नाम जो रहता है।
कोई पगली दीवानी मुझे यूँही नही कहता है।
खेल रहा है होली जमाना आज बाहर
मेरा दिल देख तेरे प्रेम में होली होली रहता है।
चल अब ख्याल को अपने ख्याल में रख दिया।
तेरी आराधना को हमने आंखों से चख लिया।
नही आता है तुझसे मांगना या रिझाना मुझे
मैंने तो नीर नैनों में भरकर तेरा रस्ता तक लिया।
तूने रस मेरी कलम में जब भर ही दिया है।
इस लेखन का मजा भी मैंने चख ही लिया है।
तुझे खुद से मैं दूर अब जाने न दूँगी।
मैंने दिल में बन्द करके खुदा को रख ही लिया है। - नेहा शर्मा