Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
गीत.. मुरझाने से क्यों घबराना - Dr. Rajendra Singh Rahi (Sahitya Arpan)

कवितागीत

गीत.. मुरझाने से क्यों घबराना

  • 79
  • 6 Min Read

गीत....

मुरझाने से क्यों घबराना,
जब बागों में फिर है आना।
रूप मिले चाहे जो भी पर,
गीत हमें यह फिर है गाना।।

यह परिवर्तन ही है शाश्वत,
कौन अछूता इससे जग में।
सब हैं इस धरती पर राही,
सबको चलते रहना मग में।।
आते ही हो जाता अंकित,
कब किसको कैसे है जाना।
मुरझाने से क्यों घबराना,
जब बागों में फिर है आना।।

भूल गये दुनियां में आकर,
जाने कितनी बदली काया।
मस्त हुए अपने यौवन पर,
ढूँढ़ रहे बस दर- दर माया।।
रात- दिवस बढ़ती बेचैनी,
भूल गये हैं हम मुस्काना।
मुरझाने से क्यों घबराना,
जब बागों में फिर है आना।

बचपन और जवानी बीता,
देख बुढ़ापा कोस रहे हो।
मन में संशय दुर्बलताएं,
जाने कितनी पोस रहे हो।।
डर-डर यूँ जीने से अच्छा,
जीवन का आनन्द उठाना।
मुरझाने से क्यों घबराना,
जब बागों में फिर है आना।।

साथ हमारा तब भी होगा,
जब होंगे हम दूर यहाँ से।
तुमसे हम आयेंगे मिलने,
लेकर कोई दृश्य वहाँ से।।
संकेतों की भाषा पढ़ना,
और इसे सबको बतलाना।
मुरझाने से क्यों घबराना,
जब बागों में फिर है आना।।

मुरझाने से क्यों घबराना,
जब बागों में फिर है आना।
रूप मिले चाहे जो भी पर,
गीत हमें यह फिर है गाना।।

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

IMG_20220611_181737_1655201791.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg