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क्या स्कूल अभी खुलने चाहिए?
देश में एक बार फिर से संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे वक़्त में स्कूल खोलने के क्या ख़तरे होंगे और क्या ये कदम कोरोना वायरस के प्रकोप को और बढ़ाने का काम करेगा,यह एक वाद-विवाद का उचित विषय है।
भारत में अभी स्कूल खोलने का सही वक़्त आया है या नहीं ,इस पर बात करेने से पहले बात करें कि अगर स्कूल खोलने पर विचार हो ही रहा है तो भारत के किस कोने में स्कूल खुलने हैं?
जहां इस वक़्त मामले कम हैं, वहां तो स्कूल खोलने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र और केरल जैसी जगह पर स्कूल खोलना बहुत जल्दी होगी।
ज़्यादातर अभिभावक अभी बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं हैं।हाल में एक ऑनलाइन सर्वे में भारत के अलग-अलग हिस्सों से 25 हज़ार से ज़्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं।58% लोग नहीं चाहते कि अभी स्कूल खुलें।
47% लोगों का कहना है कि वे अपने बच्चों को ख़तरे में नहीं डालना चाहते।बच्चे स्कूल जाएंगे तो उनका एक-दूसरे से मिलना, खेलना होगा। शिक्षक चाहे जितनी भी सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाएं, लेकिन वो कितना मास्क पहनेंगे, कितना डिस्टेंस रखेंगे। बच्चे अगर घर में संक्रमण ले आएंगे तो घर के बुज़ुर्गों को गंभीर ख़तरा हो सकता है।
भारत में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की तादाद 33 करोड़ है। भारत की कुल जनसंख्या का 19.29 फीसदी हिस्सा 6-14 की उम्र के बीच के बच्चे हैं जो RTE के तहत कानूनी रूप से शिक्षा के हकदार हैं।स्कूल बंद होने से इन बच्चों को उनका मिड-डे मील नहीं मिल रहा है। ये भोजन बेहद जरूरी है क्योंकि भारत में गरीब परिवार अपनी आय का 75 फीसदी हिस्सा खाने में लगा देते हैं. मिड डे मील ना सिर्फ बच्चों को सही पोषक खाना मुहैया कराता है, ये गरीब परिवारों के बड़े खर्चे को भी कम करता है। स्कूल बंद रहने से बच्चों की पढ़ाई पर ,उनके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और विकास पर भी असर पड़ेगा।
इसलिए स्कूल खुलने से पहले शिक्षकों अच्छे से प्रशिक्षित किया जाए।थर्मल स्क्रीनिंग,सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जाए।उनके पास मास्क और सभी सुरक्षा की चीज़ें हों।क्लासरूम के बाहर सैनेटाइज़र लगें। शिक्षकों को बच्चा बीमार होने पर क्या करना है,इसका प्रशिक्षण हो।
लॉकडाउन के दौरान घर से पढ़ाई की कोशिशें की गईं लेकिन देश में हर शहर और गांव में ना तो तेज इंटरनेट की गारंटी है, ना ही सभी घरों में स्मार्टफोन और कंप्यूटर हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि घर पर रहने से माता-पिता बच्चों की पढ़ाई को ज्यादा अच्छे से समझते हैं।ग्रामीण अंचल और शहरी स्लम स्कूलों में पानी की कमी को देखते हुए बार-बार हाथ धोने की कितनी सुविधा होगी,यह चिंता का विषय है।
गीता परिहार
अयोध्या
आपने बहुत बारीकी से. स्कूल खोलने में आने वाली सारी समस्याओं की चर्चा आपने विस्तार से की है.
जी, कोशिश की है। धन्यवाद