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कवितानज़्म
अरमान सीनेमें दफ़्न अपने हज़ार लिए फिरते हैं हम अपनी चलती - फिरती मज़ार लिए फिरते हैं वक़्तकी दीमक ने हमपे जो लिख डाले हैं तब्सिरे हम बशर कुदरत का वोह शाहकार लिए फिरते है #बशर