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इरादों मे तासीर - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायकअन्य

इरादों मे तासीर

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चित्र आधारित कथा
प्रतियोगिता हेतु
06/01/2021
इरादों की तासीर

तब शिखर 5–6 साल का था। उसकी दादी सब्जी की टोकरी सिर पर उठाकर पूरे गाँव में घूम-घूम कर बेचती थी। अक्सर लोग उन्हें सब्जियों के बदले अनाज दे दिया करते थे।

कभी कभी यही लोग दादी को पुराने कपड़े दे देते जो उनके बच्चों के होते थे।दादी घर आकर उन कपड़ों को अच्छे से धुल देती और उसे पहनने के लिए देती।वह उन कपड़ों को पहनकर गाँव भर में घूमता। जिस दिन वह घर पर होता , दादी के साथ वह भी सब्जी की टोकरी लेकर जाता। एक बार जब वह एक घर के सामने से गुजरा,उस घर के बच्चे उसके कपड़े ( जो कि उनके थे) देखते ही उसे चिढ़ाने लगे अरे यह तो हमारे कपड़े हैं।वह बहुत शर्मिंदा हुआ।

घर आकर उसने एक कागज पर तस्वीर बनाई।इसमें बड़ा सा चांद था और उस पर अपना नाम लिखा।दादी ने देखा कहा ," यह क्या है?" उसने कहा," मैं चाहता हूं एक दिन मेरा नाम चांद- सितारों तक पहुंचे।" दादी ने कहा,"उसके लिए तुम्हें कड़ी मेहनत करनी होगी।छोटे से छोटे काम से शर्मिंदा नहीं होना होगा। कोई भी काम छोटा नहीं होता है,जो काम हमें हमारी मंजिल तक पहुंचा दे, वही बड़ा काम होता है। इरादे पक्के हों तो मंजिल जरुर मिलती है। दादी की सीख को उसने गांठ में बांध लिया।

उसने दादी से कहा," हम अपने फटे कपड़े पहन लेंगे, पर औरों के कपड़े दुबारा ना लाना।" वह सुबह जल्दी उठकर सब्जी खरीदने मंडी जाता।उसने दो ढाबा वालों को सब्जियां उचित दाम पर पहुंचाता।वह दादी की मेहनत भी बच गई। धीरे -धीरे उसने दुकान खोल ली। दादी दुकान देखने लगीं।उनकी मेहनत रंग लाई।अब वह इधर- उधर खेलने में समय नहीं गंवाता था, घर पर ही रहता और मन लगा कर अच्छे से पढ़ता। दादी ने कहा," देखना, जो आज तुम पर हंसते हैं,यही लोग तुमसे मदद मांगेगे और दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे।"

वह दादी के कहे अनुसार पढ़ने लगा।समय चक्र अपनी गति से चल रहा था।उसने ग्रैजुएशन किया, कंपीटिशन की तैयारी शुरू कर दी।उसके दो वर्षों की मेहनत ने उसे उसकी मंजिल छूने का मौका दे ही दिया।

आज शिखर के इंटरव्यू लेने वाले ने लिखा,"गरीब बस्ती से चांद तक का सफर" और उसे अपनी बनाई वह तस्वीर याद आ गई,साथ ही दादी की नसीहत। चांद तक पहुंचना केवल ख्वाब में ही नहीं होता, इरादों में तासीर होनी चाहिए।

गीता परिहार

अयोध्या

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दादी की परी
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