कवितागजल
ग़ज़ल
जमी काई हटाने में बहुत ही देर लगती है,
किसी से दिल लगाने में बहुत ही देर लगती है।
घड़ी भर की मुलाकातों से हो जाता है परिचय पर,
उसे रिश्ता बनाने में बहुत ही देर लगती है।
नहीं मिलता है मुझको चैन मन बेचैन रहता है,
विचारों को सुलाने में बहुत ही देर लगती है।
ज़रा सी बात में झुक जाती है देखो ग़रीबी तो,
अमीरी को झुकाने में बहुत ही देर लगती है।
नदी नाले ज़रा-सी धूप से सूखे पड़े लेकिन,
समंदर को सुखाने में बहुत ही देर लगती है।
उसे भी वक़्त दो जो आई है घर में नई दुल्हन,
नये घर को बसाने में बहुत ही देर लगती है।
'किरण'की ज़िन्दगी का बस यही तो इक फ़साना है,
ग़मों में मुस्कुराने में बहुत ही देर लगती है।
इंदु मिश्रा'किरण'