कवितादोहा
दोहा
प्रेम के रंग में जगी, रुकी रही ये रात
पिया मिलन की आस में, बनी नही ये बात - नेहा शर्मा
इश्क़ इश्क की बात में, इश्क न बोले बोल
घुल गया रंग इश्क का, हया न कोई तोल - नेहा शर्मा
वसुंधरा बिखरी छटा, लेय घटा मन मोह
फैले पंख मयूर के, भूल गए सब बिछोह - नेहा शर्मा
पायल की झनकार से, बजे गीत मल्हार
खिल जाएं कलियां सभी, छेड़ें दिल के तार - नेहा शर्मा
मुझे पढ़ते हुए, श्री कृष्ण याद आ गए। काश कभी मैं भी ऐसा कुछ लिख सकूं,
तुम बहुत ऊपर का लिखती हो। अगर यह विधा सीखने की बात है तो मैं सीखा दूँगी जब कहो तब