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कवितानज़्म
कायनात हैरान है वजूद ए इन्सान के बेबात बेताब होने पर सूरज कोभी है नहीं गुमान तनिक उसके आफताब होने पर दिनभर आस्मां की अगम्य अनगिनत बुलंदियों को नापकर उफ़क पर आकर उसे आख़िर डूबना है शबो-शाम होने पर © 'बशर' بشر.