Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
ट्रैकिंग - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

ट्रैकिंग

  • 156
  • 13 Min Read

कुछ जगह attract करती हैं। ऐसी ही जगह है जबल जैश जहां पहाड़ों पर चढ़ाई की हमने। अपर्णा सबसे ज्यादा excited थी। मुझे पहाड़ों के नाम से ही थोड़ा डर लगता है और इतना संकरी रास्ता हो तो डर से बुरा हाल हो जाता है जरा सा पैर फिसला तो ऊपर से टमाटर की तरह न लुढ़क जाए यह डर हर पल लगा रहता है। यह दूसरी बार था जब मैंने ट्रैकिंग की। झोला लटकाया dslr लटकाया और चल पडे। इस बार का सभी का लक्ष्य था कि झंडे तक हर हाल में जाना है।

हालांकि मेरा पैर बहुत बार फिसला लेकिन प्रभु की कृपा से खाई में गिरने से बचती रही। एक बार तो हुआ यूं कि रस्ता ही गलत पकड़ लिया फिसलने पत्थरों पर पैर रख रखकर मैं बड़ी मुश्किल से सही रास्ते पर पहुंची। इस चलने वाली दौड़ में मैं सबसे पीछे और सबसे धीमी लड़की थी। खैर जैसे तैसे आंधी तूफानों जैसे चट्टानों को पार करती हुई मैं हांफ हांफ कर पानी पीती हुई झंडे तक जा पहुंची। जब तक मैं झंडे तक पहुंची मेरे बाकी साथी लोग वापसी की तैयारी में लग गए।

मैंने चोटी पर पहुंचकर पहले एक पत्थर ढूंढा विश्राम के लिए। वह इतनी सी जगह थी कि वहां एक या दो लोगो से ज्यादा खड़े नही रह सकते थे। खैर मैं वहां बैठकर खाने में लग गई। दुनिया की बातों से बेपरवाह।

उसके बाद साँस आने पर मैंने नज़ारे का आनंद लिया। क्योंकि ऊपर आने और चढ़ाई के डर में मैं कहीं भी देखने में असमर्थ थी मेरा पूरा ध्यान सिर्फ मेरे उल्टे सीधे पड़ते पैरों पर था। जब मैंने नीचे और चारो तरफ देखा मेरे मुँह से बड़े जोर से निकला wowwww. ऐसा लग रहा था कि जन्नत देख ली हो। सब तरफ का दृश्य इतना लुभावना। इतने सारे पहाड़ और नीचे एक लाइन की तरह दिखती सड़कें। छोटे छोटे दिखते वाहन।

यह आंखों के लिए सुकून भरा था। अब मुझे गले में लटके dslr कैमरे की याद आई। और उस पल को तस्वीरों में कैद कर लिया। अब मुझे वहां से वापस रात होने से पहले उतरना था। मैने निश्चय किया कि आधे से भी कम जब उतरना रह जायेगा मैं रुककर सूर्यास्त की तस्वीरें अवश्य लुंगी।
कुछ तस्वीरें लेकर मैं रवाना हुई। रस्ते में फिर वही कंकड़ पत्थर मेरा पैर उतरते समय लगभग अनगिनत बार मुड़ा। पर जो तस्वीरें मैं आंखों में लेकर उतर रही थी वह सभी पीड़ा और डर भुला रहा था। मैं मेरे लक्ष्य पर पहुंची अब सूर्यास्त का बेसब्री से इंतज़ार था। ठंड शरीर के हर हिस्से से लगभग गुजर रही थी। सभी सदस्य मुझे छोड़कर नीचे जा चुके थे। परन्तु मैं जिद्दी जब तक सूर्यास्त की तस्वीरें न लूं तब तक क्या फायदा। यही सोचकर मैं रुकी रही।

पहाड़ों पर कचरा फेंकना मना है तो इसलिये कचरे के लिए कवर हम साथ लेकर चलते हैं सदैव वह मैंने खा पीकर अपने बैग में रख लिया। ताकि डस्टबिन आने पर फेंक दिया जाए।

सूर्यास्त होने लगा बेहतरीन तस्वीरें खींची और फिर नीचे की तरफ चल दी। मैं जब बिलकुल नीचे उतरी तो रात हो चुकी थी। थोड़ा समय वहां रुककर विश्राम किया और फिर गाने सुनते हुए। थकान से चूर खूब सारी यादें समेटे हम सभी अपने अपने घरों को लौट आये।

नेहा शर्मा
जबल जैश में पहाड़ से व्यू की तस्वीर

IMG-20210207-WA0006_1612800912.jpg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत अच्छी पोस्ट. ट्रेकिंग बहुत मनोरंजक होती है. मैंने एक बार करीब 20 दिन की ट्रेकिंग की थी. बहुत पहले. पैर ना फिसले, उसके लिए उस समय बाटा के हंटर बूट आवश्यक थे. वे पत्थर पर अपनी ग्रिप बना लेते थे. अब तो बहुत विकल्प हो गये होंगे.

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत अच्छी पोस्ट. ट्रेकिंग बहुत मनोरंजक होती है. मैंने एक बार करीब 20 दिन की ट्रेकिंग की थी. बहुत पहले. पैर ना फिसले, उसके लिए उस समय बाटा के हंटर बूट आवश्यक थे. वे पत्थर पर अपनी ग्रिप बना लेते थे. अब तो बहुत विकल्प हो गये होंगे.

समीक्षा
logo.jpeg