कविताअतुकांत कविता
क्या हाल बनाया तुम्हारा वसुंधरा
दरख्त पे दरख्त काटते गए,
परत-दर-परत
सरकते गए
क्या हाल बनाया हमने
तुम्हारा वसुंधरा
तुम जीवन, छांव,
पानी देती गई
हम जहर पर जहर
उगलते गए
एहसान तुम्हारा
ना कभी माना हमने
तुम हीरे, मोती, सोना
लूटा कर
झोली फैलाती रही
हम रसायन
प्लास्टिक कचरे से
उसे भरते रहें
तुमने हमसे पानी ,
हवा ,खनिजों का
मोल नहीं मांगा
हम इंच दर इंच
सरकते हुए ,
कीमतें तुम्हारी
बढ़ाते गए
क्या हाल किया
हमने तुम्हारा वसुंधरा,,