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आप भी याद रखना - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

आप भी याद रखना

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"यादों के झरोखे से"

* आप भी याद रखना. *

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मेरे एक बचपन के मित्र हैं.विगत कई सालों से वह मुंबई में रहने लगे हैं.मेरे दोस्तों में वह सबसे सीधे और शरीफ, हैं पर पता नहीं क्यों वह अपनी तरफ से कभी फोन नहीं करते.पर जब कभी उनके पास रहने चले जाओ तो उनके व्यवहार का कहना ही क्या..!

मै अकसर उन्हें फोन कर लेता हूँ,और उनके फोन न करने का उलाहना भी दे देता हूँ.वह अपनी गलती मानते हुए कहते भी हैं कि "अब तुम्हें शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा".पर फिर वही ढाक के तीन पात.अगर मैं न करूँ, तो सालों तक उनका फोन नहीं आता.

अबकी मैं उनकी इस बात से बहुत नाराज़ था और तय कर लिया था कि अपनी तरफ से उसे फोन कत्ई नहीं करूंगा.अब एक साल होने को आया,मैने फोन नहीं किया तो फिर नहीं ही किया.

फ़ोन भले न किया हो पर उसकी याद बराबर आती रही.और अपनी ज़िद पर भी, कुछ ख़ुद से नाराज़गी की अनुभूति होने लगी. सोचता, दोस्ती में तो ये सब चलता ही है.

खैर दोस्ती के वशीभूत होकर, मैने फ़ोन मिला ही दिया.उसकी बात चीत में, वही अपना पन, वही प्यार, वही खुलापन,उसकी आवाज़, सुन कर मैं पुरानी यादों में खो गया.
गिले शिकवे की कोई याद ही नही आई,जबकि, पहले सोच रहा था कि आज फोन पर उसे कस के डाँट लगाऊंगा. कुछ देर बातचीत के बाद

उसने बहुत भारी गले से बताया, "गोपाल मेरी तबियत अब ठीक नहीं है, हो सके तो एक बार आकर मिल जाओ.बहुत इच्छा है तुमसे मिलने की .मै अब कानपुर नही आ पाउंगा ."

मै उसकी बात सुनकर सकते में आ गया.सोंचने लगा,यह तो बिलकुल ठीक था इसे क्या हो गया?

मैने पूछा क्यों , क्या हो गया?उसने कहा "ज्यादा डिटेल में मत जाओ गोपाल , आ सको तो जल्दी आ जाओ.जाने से पहले एक बार मिल लें बस."

अपने मित्र की दर्दभरी आवाज़ "हो सके तो...... " मुझे उससे मिलने को बेचैन कर रही थी...!

अगले सप्ताह ही मैं, उसके पास पहुँच गया.

वह बहुत कमजोर हो गया था.बड़ी मुस्किल से वह अपना निजी काम कर पाता था.उसका बेटा बहू और उसके बच्चे बैंगलोर से आ गए थे.

मै दस दिन तक उसके पास रुका.हम लोग ज़्यादातर

अपनी पुरानी ज़िंदगी को याद करते.कभी कभी वह किसी बात पर ज़ोर से हँस देता, तो उसके घरवालो को बहुत अच्छा लगता. क्यों कि महीनों से उसकि हँसी किसी ने नहीं सुनी थी. ,जिस दिन मुझे मुंबई से वपिस आना था उस दिन मेरा मित्र सुबह से ही बहुत खुश दिखने कि कोशिश कर रहा था..!

पर जब चलते हुए आख़िरी बार मैने उसे गले लगाया तो वह अपने आंसू नही रोक पाया.मेरे नयन तो पहले से ही बहने के लिए तैय्यार थे, किसी तरह रोके हुआ था.

उसकी स्थिति देख कर चला नहीं गया, कुछ देर को फिर बैठ गया .उसके बेटे ने कहा "जल्दी चलिए नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी".

जब ये पता हो कि मैं, अपने जिगरी दोस्त को आख़िरी बार देख रहा हूँ अब इसके बाद जीवन में इससे कभी नहीं मिल पाउंगा, उस समय के हालात शब्दों में लिखे नहीं जा सकते.

इस आखिरी मुलाक़ात के बीस दिन बाद उनके बेटे का फोन आया,उसने कहा अंकल पापा ने आपको आखिरी दिन भी याद किया था...!

मैं, अपने मित्र को याद करते हुए सोंच रहा था अगर मैने उस दिन उसको फ़ोन न किया होता तो क्या मै इतने प्यारे मित्र से कभी मिल पाता. फ़ोन ना करने की अपनी ज़िद वाली गलती को कभी माफ कर पाता ..!

मित्रों आपसे बस एक गुज़ारिश है, मेरे इस संस्मरण का अन्तिम पैरा दो बार पढ़िएगा और् अपने मित्र को फ़ोन न करने वाली ज़िद , कभी मत करियेगा...!

यायावर गोपाल खन्ना

कानपुर

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