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गृहस्थ आश्रम (लघुकथा) - Sushma Tiwari (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकऐतिहासिकप्रेरणादायक

गृहस्थ आश्रम (लघुकथा)

  • 942
  • 5 Min Read

गृहस्थ आश्रम

न जाने वह कब से भटक रहा था। उसके जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि वह अब तक खुद को नहीं जान पाया था। अंतरात्मा की बेचैनी और सुख की तलाश के चलते, उसने अपने जीवन को लियोनार्दो द विंची की कोडेक्स साईलेंडा किताब जैसा बना लिया था। एक-एककर हर पन्ने की पहेली को सुलझाने के बाद जब उसने आखिरी पन्ना खोला तो उसे चार दरवाज़े और चाबियां दिखी।
इन दरवाज़ों का कार्यभार सँभालने वाली संचालिका ने बताया,
" हर दरवाज़े के उस पार अनंत सुख और इच्छित मनोकामनाएं हैं। आपको बस कल्पना करनी है, जहाँ जाना चाहते हैं और जो भी करना या पाना चाहते हैं। यहाँ का एक मिनट, वहाँ वर्षों का समय...।"
उसने देखा कि हर दरवाज़े से कुछेक मिनटों में लोग बाहर आते फिर दूसरे दरवाज़े से कहीं और चले जाते थे मगर एक दरवाज़ा ऐसा था जहाँ से कोई बाहर नहीं आता था।
उसने जिज्ञासावश संचालिका से पूछा,
" क्या आप बताएंगी कि उस दरवाज़े के पीछे क्या है ? क्या सुख का मूलमंत्र वहीं प्राप्त हो रहा है?"
" पता नहीं....वहाँ से कभी कोई वापस नहीं आया। वैसे...कहा जाता है यह दरवाजा सीधे अपने घर की ओर खुलता है।"

©सुषमा तिवारी

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

खूब

Ajay Goyal

Ajay Goyal 3 years ago

इस बुक के बारे में पहली बार सुना... अपना घर, परमेश्वर... उम्दा प्रस्तुति

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

वाह क्या बात है

Sushma Tiwari3 years ago

जी हार्दिक आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बेहतरीन लघुकथा

Sushma Tiwari3 years ago

बहुत आभार सखी

teena suman

teena suman 3 years ago

जाने पहचाने विषय को एक अलग रूप में प्रस्तुत किया .... बेहतरीन रचना

Sushma Tiwari3 years ago

हार्दिक आभार

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

वाह बेहद उम्दा लघुकथा...??

Sushma Tiwari3 years ago

बहुत आभार उत्साहवर्धन के लिए

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