कहानीसामाजिक
चूड़ी की दुकान पर तरह तरह की चूड़ियां सजी हुई थीं। लाल चूड़ी, हरी चूड़ी, सुनहरी और धानी रंग की भी। खूबसूरत, नाज़ुक और डिजाइनर। उन्हें देख कर ही लग रहा था वे नाज़ुक कलाइयों के शृंगार के लिए बनी हैं। उन्हीं के बीच सादी सी, थोड़ी मोटे आकार की चूड़ियां भी थीं जो एक कोने में रखी थीं। बाकी चूड़ियां उन्हें देख नाक भौं सिकोड़ने लगीं, 'ये कैसी चूड़ियां हैं? लगता है इन्हें चूड़ी बनाने वाले ने बड़े ही बेमन से बनाया है।'
'नहीं! हमें भी चूड़ी बनाने वाले ने उतनी ही मेहनत और प्यार से बनाया है जितना कि तुम्हें। बल्कि सच कहूं तो उसने हमें बनाने में ज्यादा मेहनत की है।' इतनी देर से ख़ामोश बैठी साधारण चूड़ी ने कहा।
'फिर तुम्हें ऐसा को बनाया है। बदसूरत! बेडौल!' धानी रंग की चूड़ी ने व्यंग्य से पूछा।
'मेरे कहने पर! क्योंकि मैं तुम्हारी तरह नाज़ुक कलाइयों को नहीं बल्कि मेहनतकश कलाइयों को सजाना चाहती हूं।
बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली कथा! वैसे भी जब मैं सुनती हूं चूड़ियों के नाजुक कलाइयों का प्रतीक के रूप में तो जरूर सोच में पड़ जाती हूं क्या चूड़ियां सचमुच सिर्फ कमजोरी का प्रतीक है। लेकिन इस कथा के माध्यम से लेखिका ने उन कलाइयों पर सजी चूड़ियों को भी सम्मान दिया है जो मेहनतकश होने की प्रतीक है। मुझे इस कथा को पढ़ने के बाद कई स्मृतियां याद आती हैं मेरी दादी, यहां तक कि मेरी सासू मां भी जब चूड़ियां लेती है तो ऐसे ही मोटी मोटी मजबूत देख कर लेती थी उनका मानना था कि जब हम मेहनत का काम करते हैं तो यह नाजुक चूड़ियां बीच में आती है। मजबूत चूड़ियां ढाल की तरह काम करती हैं यह उन मेहनतकश स्त्रियों की मेहनत का प्रतीक बन जाती हैं
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद