कवितालयबद्ध कविता
वक्त की गहराई में
इस आसमान की ऊंचाई में
मैं कुछ सवाल यूँ बुनती हूँ
औरत हूँ बस ये पूछती हूँ।
क्यों अधिकार नही मुझे कुछ कहने का
क्या हक नही अपने लिए जीने का।
पति बच्चे ससुराल सम्भालो
20 के होते ही मेहंदी रचा लो।
क्या हक नही सपने पूरे करने का
क्या हक नही खुद के लिए जीने का।
शादी कर जब दहलीज लांघी
क्यों फिर पैरों में बेड़ी बाँधी
मर्जी पृरी करना शादी के बाद।
पर कब हुई मैं आजाद
पूछ रही है नेहा तुम सबसे
मुक्त हुई हो आखिर कब कैद से।
खर्चा कर माँ बाप ने पढ़ाया
हमने उसका उपयोग कब पाया।
चूल्हे चौके से फुर्सत नही।
उस ज्ञान का क्या सदुपयोग किया।
पूछ रही नेहा अब तुमसे
आखिर पढ़ लिखकर क्या पाया?
माँ बाप ने अच्छा बड़े घर का लड़का ढूंढा
क्या सिर्फ इसलिए तुमको पढ़ाया।
एक जवाब मेरा भी सुन लो।
जीवनसाथी ऐसा चुन लो।
घरवाले जो पढ़ी लिखी लड़की मांगे।
नौकरी करने का उसको हक दे।
सहयोग बराबरी का रिश्ते में हो।
न घुटकर जीना किश्तों में हो।
बर्बाद पैसे न माँ बाप के करना।
अपने सपने ऊपर रखना
अपने सपने ऊपर रखना। - नेहा शर्मा