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*एवरेस्ट विजय की वर्षगांठ पर*
सन 1953 में आज के दिन ही तेनजिंग नोरके और सर एडमंड हिलेरी ने पहली बार दुनियां की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता पाई थी।
इन दोनों में किसने पहले एवरेस्ट पर कदम रखे थे ये बात इन दोनों ने किसी को कभी नहीं बताई।
तेनजिंग नेपाल के रहने वाले थे ,पर उस समय दार्जिलिंग में काम के लिए बस गए थे। वे शेरपा परिवार में जन्में थे।शेरपा अधिक ऊंचाई पर बोझ ढोने वाले कुलियों को कहा जाता है।तेनजिंग इसके पहले भी कई एवरेस्ट अभियानों में पोर्टर के रूप में सम्मिलित हो चुके थे।पर सक्षम होते हुए भी उन्हें अपने ग्रुप लीडर द्वारा एवरेस्ट पर चढ़ने की आज्ञा नहीं मिली थी।जिसका मलाल उनको था।
पर इस बार वह श्री हंट के दल में पोर्टर के रूप में नहीं बल्कि एक सदस्य के रूप में सम्मिलित होने को राजी हुए थे।
यही कारण था जो उन्हें एवरेस्ट पर चढ़ने का अवसर मिला था। अगर पोर्टर बन कर गए होते तो इस बार भी वह एवरेस्ट पर न चढ़ पाते।और शायद हिलेरी भी।
श्री तेन जिंग जी से मुझे एक बार दार्जलिंग के पर्वतारोहण संस्थान और दूसरी बार इंडियन माउंटेनरिंग फाउंडेशन के रजत जयंती
समारोह में मिलने का असर मिला था।तब श्री हिलेरी को भी देखा था।
सन 53 के बाद से पर्वता रोहण के उपकरण और संचार व्यवस्था में जो प्रगति हुई है उससे अब एवरेस्ट पर चढ़ना तबसे 100 गुना सरल हो गया है।अब तो नेपाल में कुछ व्यापारिक कंपनी भी खुल गईं हैं जो किसी भी साधारण स्वस्थ आदमी को भी 6,7 लाख रुपए में एवरेस्ट क्लाइंब करा देती हैं।
अब हर साल सैकड़ों लोग एवरेस्ट पर चढ़ने की खुशी मनाते हैं।
आज एवरेस्ट की पहली फतह की वर्षगांठ पर मैने तेनजिंग जी की एक काष्ठ प्रतिमा बना कर उन्हें याद किया है।
जयहिंद
गोपाल यायावर
29 मई 1953