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कहानी औरत की
रिया बस बहुत हो गया ,आज तो तुमने हद कर दी ,कितनी अच्छी ड्रेस लाया था तुम्हारे लिए ,कहा था पार्लर जाकर तैयार हो जाओ लेकिन तुम तो ना बस लिपटी रहो 6 गज साड़ी में ,माथे पर पल्लू लेकर गवार की गवार रहोगी तुम |हमेशा मेरी बेइज्जती कराने पर तुली रहती हो ,देखो जरा !मयूर की वाइफ निशा को ,बेहतरीन ड्रेस उस पर उसका हेयर स्टाइल और मेकअप और तुम वहीं बेवकूफ की बेवकूफ" रोहन चिल्लाए जा रहा था रिया पर|
रिया के लिए अब ज्यादा सुनना असहनीय हो गया, पिछले 8 सालों में सुनते ही तो आई है अब कहने की बारी थी -"तुम्हें मयूर उसकी वाइफ ,उसकी ड्रेस उसकी हेयर स्टाइल मेकअप दिखा ,मेरी मजबूरियां नहीं दिखी ,,जब शादी करके आई थी कितने ख्वाब थे मेरे| साड़ी में तकलीफ मुझे भी होती थी जब मम्मी जी से कहा तो मुझे दो बातें सुना दी गई, तुम आई हो बड़ी ,,हम जो इतने सालों से पहन रहे हैं हमें तो कोई दिक्कत नहीं हुई ,तुम बड़ी राजकुमारी लगती हो 'आश्चर्य तब हुआ जब तुम ने भी कुछ नहीं कहा मां को ,और में लिपटी रह गई छह गजी साड़ी में, जब मेरी देवरानी यानी निशा शादी करके आई दूसरे दिन वह सूट में थी, ना माजी ने कुछ कहा न किसी ने क्योंकि मयूर ने पहले ही साफ कह दिया था निशा सिर्फ सूट पहनेगी, काश! तुम उस वक्त मेरे लिए भी आवाज उठाते, 4 महीने की प्रेग्नेंट थी सबके सामने सोफे पर क्या बैठ गई ,मम्मी जी ने पूरा घर सर पर उठा लिया ,तमीज नहीं है बड़ों के सामने ऐसे बैठते हैं |तुम उस वक्त भी खामोश !बड़ी उम्मीद थी तुमसे पर तुम!!
कहा था तुमसे मैं भी कोई नौकरी कर लु, पर तुम! नहीं सिर्फ घर संभालो और निशा शादी के 1 महीने बाद ही नौकरी करने लगी ,मेरी इस घर में कभी किसी ने इज्जत नहीं की ,जो सब ने कहा मैंने वही माना| घर के बड़ों के सामने बोलना सूट पहनकर घूमना ,पल्लू नहीं करना सबके सामने सोफे पर ,कहीं पर भी जैसे चाहे वैसे रहना ,बैठना ,खाना -पीना निशा को किसी चीज के लिए कभी रोक टोक नहीं हुई क्योंकि मयूर उसके साथ था ||
निशा आराम से 8-9 बजे सोकर उठती है और मुझे सुबह 5:00 बजे उठना तो उठना 5 मिनट भी अगर लेट हो जाती तो फिर शामत ,,मुझे हर एक बात पर सुनाया जाता मेरे परिवार को मां बाप को ताने सुनाए जाते हैं ,और तुम तब भी चुप रहे थे¡¡ कभी मेरे लिए तुमने आवाज नहीं उठाई और जब मैंने कुछ कहना चाहा तो तुमने उल्टा मुझे दबाना चाहा, और आज तुम कह रहे हो, तुम्हारी दी गई वन पीस ड्रेस पहनती ,कैसे मुझे सूट के लिए ही कभी हां नहीं कहा तो तुम सोचो वन पीस के लिए कैसे ??तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता तुम सिर्फ अपने बारे में सोचते रहे ,और मैं घुटती रही तुम्हारे परिवार की जिम्मेदारियों में ,तुम्हारे परिवार ने तो कभी मुझे अपना समझा ही नहीं |उनके लिए तो मैं सिर्फ एक नौकरानी रही, मम्मी जी जैसा कहें वैसा मैं करूं ,जिस तरह से कहे वैसे करो, मेरी पसंद नापसंद खुशी कभी ना तुमने ख्याल किया ना परिवार वालों ने ||चलो परिवार वाले तो दूर थे पर तुम! तुम्हारे साथ तो सात फेरे लेकर आई थी कभी सोचा तुमने मेरी अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं ,,नहीं !तुमने सोचा सिर्फ अपने बारे में अपने परिवार के बारे में ,
मैं तो कहीं कुछ भी नहीं तुम्हारे लिए और आज तुम कहते हो तुम्हारी बेइज्जती हुई ,,इन 8 सालों में मैं जिस बेज्जती से गुजरी हूं जो मानसिक पीड़ा मुझे हुई है उसका क्या?? पर नहीं तुमने कभी मेरा साथ नहीं दिया. काश !तुम मेरा साथ देते मुझे समझते ..तो आज यह सब नहीं होता| मैं भी हंसती खिलखिलाती मनपसंद के कपड़े पहनती ,तुम्हारे साथ खुशी खुशी अपनी जिंदगी जीती |पर अपनी खुशियों को ही तो तुमने ताले में बंद कर लिया और चाबी दे दी मम्मी जी के हाथों में ""|| इतना कहकर रिया चली गई फिर से अपना फर्ज निभाने मम्मी जी ने जो कहा था सारे मेहमानों को खाना तुम्हें परोसना है||
टीनू सुमन
मौलिक रचना
औरत तेरी यही कहानी। वैसे अब बहुत से लोग समझने लगे हैं बहुत से घरों में क्योंकि लड़कियां पढ़ लिखकर अपनी अहमियत खोना नही चाहती