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अहम - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

अहम

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जब आपको लगने लगे कि आप बेहतर है।
खुद को दूसरो के लेवल से ऊंचा समझने लगे।
एक बात को बार बार सभी के आगे कहने लगे।
समझ लीजिये अहम आपमें घर करने लगा है।

जब जज्बातों को आप खेल समझने लगे।
किसी को कटु शब्दों में नीचा दिखा दें।
गलतियां किसी मे खोदकर ढूंढने लगे।
बहस पर किसी से जब आप उतरने लगे।
समझ लीजिये अहम अपना सर उठाने लग़ा है।

जब आपको सिर्फ अपनी तारीफ भाने लगे।
दूसरे से आप अपनी चमचागिरी कराने लगे।
घन्टो फोन पर बात कर गलतियां दोहराने लगे
और जब आप जिद में हद पार कर जाने लगे।
समझ लीजिए अहम आपको बहकाने लगा है।

जब दोस्त संगी साथी साथ छोड़ जाने लगे।
रास्ते में सिर्फ अंधेरे नज़र आने लगे
अकेले कदम डगमगाने लगे।
बुरे बुरे ख्याल डराने लगे।
समझ लीजिए अहम आपकी ज़िंदगी से जंग लगाने लगा है।

कोई हाथ थाम आपकी तरफ हाथ बढ़ाने लगे
आप उसके साथ कदम से कदम बढ़ा आगे जाने लगे।
सभी को अपने जितना काबिल समझाने लगे
अपने दिल को कोमल बनाने लगे।
समझ लीजिए अहम को अब ज़िंदगी से निकालने लगे।
अब आप ज़िंदगी को जिंदादिल बनाने लगे। - नेहा शर्मा

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