कहानीसामाजिकप्रेरणादायक
विषय:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
विधा: पत्र लेखन
हे ईश्वर,
शत- शत नमन
प्रभु, आप तो अंतर्यामी हैं घट -घट में बसे हैं।आप जानते हैं,पिछला वर्ष किसी तरह बीता,सोचा था ,अब कोरोना से निजात मिलेगी। पिछले वर्ष २२ मार्च से घरों में कैद लॉकडाउन का त्रास झेलते हुए व्यतीत हुआ था।क्या- क्या और कौन-कौन इसकी चपेट में नहीं आया।अभी एक डेढ़ माह पहले सोचा था , इसकी विदाई हो गई ,मगर यह तो और खतरनाक होकर लौटा है!इसी 7 अप्रैल को तो हमने विश्व आरोग्य दिवस की भी बहुत चर्चा की थी। क्या जानते थे कि एक बार फिर से कोरोना संक्रमण लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेगा?एक वर्ष पहले से अब की परिस्थितियां अधिक भयावह हैं ऐसा क्यों प्रभु, क्यों , असमय इतने लोग काल के गाल में समाते जा रहे हैं?
मैं जानती हूं आप बहुत दयालु हैं। आपसे अपनी संतान की पीड़ा देखी नहीं जा रही होगी।यह पीड़ा हमने खुद बुलाई है। हम नियम कानून मानते ही नहीं।बाजारों में भीड़, होली पर अबीर- गुलाल उड़ाए गए,संगीत व नृत्य की प्रस्तुति हुईं, भक्तों ने भी जमकर अबीर, फूलों और पानी से रंग खेला,शोभायात्रा निकाली गईं,गलियों, चौबारों पर बच्चों और युवाओं ने हुडदंग मचाया। प्रभु, यह संक्रमण हमारा ही फैलाया हुआ है, किसी और का दोष नहीं, किंतु कृपा निधान, आप कृपा करें और इस संकट से लोगों को राहत दें।
बहुत कठिन समय है , आप इस संसार के रचयिता हैं। अपनी रचना का विध्वंस होते नहीं देख सकते ,रक्षा करें,नाथ!
हे ईश्वर,आप पर मुझे पूरी आस्था है, किंतु संक्रमण के भय से डॉक्टर्स अन्य मरीजों को नहीं देख रहे हैं,करोड़ों लोग एड्स,हृदय रोग, मधुमेह के समय रहते चिकित्सकीय परामर्श और दवाई से वंचित होकर अंतिम सांस ले रहे हैं।अब शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ रह पाना असंभव लग रहा है। सबसे ज्यादा पीड़ादायक बात तो यह है कि कितने ही स्वास्थ्य कर्मचारी ,पुलिस बल और जनप्रतिनिधि इस महामारी के शिकार हो रहे हैं,जो स्वास्थ्य प्रगति के क्षेत्र में योगदान दे सकते थे।
हे परमपिता, स्वस्थ दुनिया देखने की चाहत क्या मेरी अधूरी रह जाएगी? मैं अपने आत्मीय जनों को स्वास्थ्य संबंधी कई सारी समस्याओं से जूझता देख रही हूं। आप पर अडिग श्रद्धा और पूर्ण विश्वास है कि एक बार फिर हमारे भूल माफ़ करके हमें संकट से उबारेगें।
गीता परिहार
अयोध्या