कवितालयबद्ध कविता
किसी ने पूछा मुझसे पहला प्यार क्या है।
मैंने हँसकर ज़िंदगी कह दिया।
मौत दरवाजे पर दुल्हन सी सजी खड़ी थी।
मैंने ज़िंदगी से की बन्दगी कह दिया।
हौंसलों से मेरे अब डर रही थी वह भी।
मैंने उसे मौत के भेष में दरिंदगी कह दिया।
माँग रही थी दुआएं अब जिंदगी मेरी।
मैंने हँसकर मौत को फिरंगी कह दिया।
बैठ गयी मैं मौत की आंखों में आंखे डालकर
मैंने जिंदगी को रंग बिरंगी कह दिया। - नेहा शर्मा