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औकात - आकाश त्रिपाठी (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

औकात

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औकात
१.
उसकी चाहत में इतना पागल था,
की अपनी औकात भुला बैठा।
और उसने एक दिन पूंछ लिया,
तेरी औकात ही क्या है?
२.
सारा वक्त तो तुझपर लूटा दिया,
उस औकात को क्या देता।
जिसे देखने के लिए,
सारा ज़माना उमड़ पड़ता है।
३.
मैंने एक बात भी ना देखी,
मोहब्बत को निभाने में।
अक्सर औकात देखा करते हैं,
ना जाने क्यूं ज़माने में?

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