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माँ की सीख - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायकलघुकथा

माँ की सीख

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  • 7 Min Read

अभी दो ही दिन तो हुए थे पूजा को अपने घर से विदा होकर ससुराल आए हुए। इन दो दिनों में ही पूजा को यह आभास हो गया था कि अपने हमेशा ही हमारी बेहतरी के लिए हमें सीख प्रदान करते हैं। विवाह से पूर्व पूजा जब अपने घर में रहती थी तब माँ किसी-किसी बात पर डाँट देती थी पूजा को।
माँ एकांत में पूजा को प्रेम से समझाती भी थी। उस वक्त पूजा को यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। माँ की बातें दवा की भाँति करवी लगती थी पूजा को। जबकि माँ निजी स्वार्थ हेतु पूजा को नहीं समझाती थी, बल्कि माँ इसलिए पूजा को समझाती थी कि पूजा जिस घर में जाए वहाँ उसके विचार व व्यवहार के बदले उसे बहुत मान-सम्मान मिले। पर पूजा कहाँ समझने वाली थी।
पूजा ससुराल में अपने कमरे में एक कोने में बैठकर बीती बातों को यादकर पछता रही थी। तभी माँ का कॉल अपने फोन स्क्रीन पर देखकर पूजा की आँखों से बहने वाला आँसू एक पल के लिए रुक जाता है। माँ कहती है, "मेरी लाडली तू ठीक तो है न! अपना व पूरे परिवार का ख्याल अच्छे से रखना मेरी गुड़िया।"
माँ की बातों का आज कोई जवाब नहीं दे रही थी पूजा। अंत में पूजा बस इतना कहती है, "माँ मुझे क्षमा कर दो। आप जब समझाती थीं मुझे तब मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। आज जब आप मेरे पास नहीं हैं तब एक अज़ब खालीपन महसूस कर रही हूँ। काश! माँ हमेशा के लिए आप मेरे पास रहतीं, तो सचमुच कितना अच्छा रहता न!" माँ भी रोने लगती है और फोन सिराहने में रख देती है।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

रचना में टँकन त्रुटियाँ खलती हैं सन्दीप ठीक कर लेना

Kumar Sandeep3 years ago

मार्गदर्शन हेतु आभार। आपका?

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

अपनो से दूर होने पर ही उनका सही अहसास होता है बिल्कुल सही कहा सन्दीप।

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