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बुधु भगत - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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बुधु भगत

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लारका आंदोलन और कोल विद्रोह के अगुआ महान क्रांतिकारी बुधु भगत
क्रांतिकारी बुधु भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी 1792 में आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के चान्हो प्रखंड अंतर्गत कोयल नदी के तट पर स्थित सिलागाई नामक ग्राम में एक उरांव किसान परिवार में हुआ था।वह बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे और एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।
आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है, लेकिन इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।
बुद्धू भगत एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें गुरिल्ला युद्ध में निपुणता हासिल थी। उन्होंने अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध करने के लिए प्रशिक्षित किया था। उन्होंने
छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया।उन्होंने अंग्रेज हुकूमत की नाक में दम कर दिया था। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये के इनाम की घोषणा कर दी थी। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया।

13 फरवरी, 1832 ई. को कप्तान इम्पे के नेतृत्व में पांच कंपनियों ने सिल्ली गांव को पूरी तरह से घेर लिया। बुधु भगत ने देखा कि अंग्रेजों की बंदूकों और पिस्तौलों के सामने तीर और कुल्हाड़ी टिक नहींं पाएगी,तब उन्होंने आत्मसमर्पण करना चाहा ,जिससे निर्दोष लोगों की जानें ना जाएं।लेकिन बुधू के साथी उनके चारों ओर घेरा डालकर खड़े हो गए।कैप्टन इम्पे ने अंधाधुंध गोलियां चला दीं, जिसके परिणामस्वरूप करीब 300 से अधिक ग्रामीण मारे गए। इसके साथ बुधु भगत और उनके बेटे हलधर और गिरधर भी अंग्रेजों के साथ लड़ाई करते हुए 14 फ़रवरी, सन 1832 को शहीद हो गए।

गीता परिहार
अयोध्या

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