कहानीसंस्मरण
*इस भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी..! ,,,*
मैं आज शाम को दीपावली के पूजन का सामान लेने कानपुर के नवाब गंज बाजार गया हुआ था।यह बाजार, करीब 400 मीटर की लम्बाई में सड़क के दोनों ओर लगता है।
मैं भगवान गणेश जी और माँ लक्ष्मी की मूर्ति खरीदते समय उनकी कला पर बहुत ध्यान देता हूँ।इस कारण एक बार पूरा बाजार घूमने, देखने के बाद ही मैं अपनी पसंद की मूर्ति खरीदता हूँ।
तभी मैंने देखा कि एक 13 - 14 साल का लड़का भी मेरे साथ ही हर दुकान पर सबसे सस्ती मूर्ति की तलाश में लगा हुआ है।पर इस बार मिट्टी की कोई भी साफ बनी मूर्ति चालीस रुपये से कम की नहीं थी।एक दुकान दार उसे 35 रुपये में देने को राजी हो गया ।उसने अपनी जेब में पड़े सब सिक्के निकाल कर गिने वह 27 रुपये ही निकले।उसके मुख पर निराशा और विवशता के भाव स्पष्ट दृष्टि गत हो गये।कुछ देर रुकने के बाद वह आगे चल दिया।मैंने उसे आवाज देकर बुलाया वह आ गया मैंने दुकानदार से कहा इसे यह मूर्ति दे दो।दुकान दार मेरा मतलब समझ गया उसने वह मूर्ति उसे 27 रुपये लेकर दे दी।उस लड़के के चेहरे पर सन्तोष की झलक थी। उसने अपने कपड़े के झोले में जिसमें शायद 100 ग्राम खीलें और एक स्टील की कलछी पड़ी थी,वो मूर्तियां रख लीं।वह मुझे नमस्ते करके चला गया।
अब मैंने दुकानदार को दस का नोट देकर कहा उस मूर्ति के बाकी पैसे ले लो।दुकान दार ने कहा "साब जब वह लड़का पैसे गिन रहा था तो मैंने भी देखा था।मेरे मन में भी आया था कि उसके पास जितने पैसे है उतने में ही उसको यह मूर्ति दे दूं पर पता नहीं मैंने ऐसा क्यों नहीं किया।आपने बहुत अच्छा किया उसे बुला कर।आप परेशान मत होइये , इतना तो मै भी कर सकता हूँ।"
आज का वाक्या देख कर मुझे अपने बचपन में सड़क पर टट्टर में रहने वाली विट्टन चाची की याद आ रही है। वह घर में रखे पुराने गणेश लक्ष्मी की पूजा ही पार्क से फूल लाकर कर लिया करती थीं।एक बार मेरे पूछने पर उन्होंने कहा था कि मेरे घर में ऐसा ही होता है।
मित्रों ,दीपावली के इस पावन पर्व पर हो सके तो अपने साथ किसी उदास चेहरे पर भी मुस्कान ला दीजिये।
हो सकता है ऐसे चेहरे आपको आसानी से न दिखें ,बहुत लोगों में अपना दर्द छिपाने की आदत होती है।
यायावर गोपाल खन्ना
वाह वाह, चैतन्यपूर्ण
Sudheer ji ..Dhanyavad..!
Sudheer ji ..Dhanyavad..!