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"कुछ"
कविता
होने को साकार, फिर एक बार ...
काश कुछ ऐसा हो जाए
हँसो तो कुछ इस तरह
कुछ तो लोग कहेंगे
माँ से कुछ प्रश्न
मन में कुछ जिज्ञासा है
मन में कुछ जिज्ञासा है
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
कुछ सुस्त कदम, कुछ तेज कदम
कुछ बात तुम्हें सुनाते हैं
बहुत कुछ है हमारे बीच
कुछ अच्छे में, कुछ अजीब भी था
हँसो कुछ इस तरह
कुछ बातें
सबकुछ तो तय हैं ..
बहुत हुआ कि अब कुछ कहा नहीं जाता
कुछ एहसास हैं भिन्न
ये तज़ुर्बा कुछ और है
कुछ पल बैठिए उनके पास
कुछ लड़के
कुछ भी हमारा नही होता
कुछ तीर तुक्के
राह में कुछ लोग अब भी मुस्कराते चल रहे
2020 तुमने सिखलाया भी है बहुत कुछ
सब कुछ पाकर भी....
सब कुछ ये सरकार खा गई
# इकरार
कुछ बहके हुए ख्याल
खूंटी पर टंगी वर्दियां
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
मोहब्बत की कुछ बूंदें।
कुछ उल्टा सीधा
आज कुछ नया लिखूंगी
कुछ कुछ होता है
जो कुछ नहीं करते बहुत कुछ करते हैं
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
हाँ, हँसो कुछ इस तरह
✍️गम भी जिंदगी को कितना कुछ सिखा देता है।।
✍️किसी को किसी से भी प्यार हो जाता है।
कुछ ऐसा हो जाए
प्रीत में कुछ ना शेष
जिंदगी कुछ इस तरह....
कुछ लिखे
खोमोशी कुछ कहती है
कुदरत कुछ कहती है
कुदरत कुछ कहती है
कुछ लोग यूँ ही परेशान हैं
मरते किसान नहीं, मर रही हमारी आत्मा है।
कुछ भी नहीं है बशर बात नई जिंदगी में
बशर सब -कुछ जान लेता है
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
आगाज़े-सफ़र कर रहा है तू
कुछ तो बेहतर है
कुछ कम अपने अहबाब रख
औलाद की ख़ातिर सबकुछ कर जाता है आदमी
कुछ शब्द
जख़्म-ए-जिगर को बशर मेरे हरा अभी कुछ रोज रहने दे
हारने को कुछ बचा ही नहीं
मैं सब कुछ था तेरा, मेहंदी महावर हो नहीं पाया
कुछ विचार
*कठिन है बिन कुछ कहे कुछ कहना भी*
कुछ विचार
*कुछ गीला पड़ गया है*
कुछ ऐसा लिखो बशर
वो कुछ और पढते हैं
*सरपर कुछ नहीं आस्माँ के सिवा*
मसाइल कुछ अयाँ नहीं हैं
*खुश रहने में भी कुछ जाता है क्या*
कुछतो नसीब का भी होना चाहिए
गिला अब कुछ भी नहीं
जो झुक गए तो कुछ नहीं
वो भी कुछ मग़रूर था
फ़ासले और दूरियां
क्या -कुछ न थे
डरने जैसा कुछ भी नहीं है
बात कुछ भी नहीं
कुछ भी बदल सकते हैं
अल्फ़ाज ना कर सके बयाँ
जमाने की राह
कुछ तो वज़ह रही होगी
मेरे कुछ फर्ज़ है
अब खुदको भी समय कुछ दान करो
कुछ लोग मेरी पसंद के भी होंगे
बहुत कुछ खोना पड़ता है
मैं कुछभी नहीं जानता
कहानी
मायाजाल
प्यार से बढ़कर कुछ नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
कुछ जरूरी बातें
नामुमकिन कुछ भी नहीं
खुशियों के कुछ पल
भीड़ में कुछ ऐसे भी
कुछ ख्वाब अधूरे से
काश बुद्ध सा कुछ करता
"खौली पास "डायरी के कुछ अंश
काश बुद्ध से कुछ करके जाट
काश बुद्ध सा कुछ कर जाता
"मैंने जो कुछ अपने दादाजी से सीखा " 🍁🍁
लेख
किसान के बिना हम कुछ भी नहीं
काँटो के बीहड़ में कुछ महकते गुलाब
अब तो कुछ काम करने लगे हैं..
मैं ग़लत हूं, कुछ की नज़रों में..
कुछ तीर कुछ तुक्के
बच्चों के संस्कारों के विकास पर कुछ विचार
"फ़िल्म समीक्षा के बारे में कुछ विचार "
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