कहानीप्रेरणादायक
मायाजाल
बार-बार निगाहें स्क्रीन की तरफ जा रही थी| एक बार फिर मैंने अपनी जेब टटोली ,हां सब कुछ सही है |फिर से स्क्रीन को निहारने लगा|
"पापा" पास से आवाज आई|
"अरे! तुम इस वक्त ,कॉलेज नहीं गए ?क्या हुआ सब ठीक तो है ?"हड़बड़ाहट में कई सारे सवाल मुंह से निकल गए|
" पापा आपको कुछ बताना था, काफी दिनों से कुछ कहना चाह रहा था ,आज हिम्मत हुई|"
बेटे की आवाज में परेशानी साफ झलक रही थी|
" हां बेटा बोलो !क्या बात है ,देखो मैं तुम्हारा पिता होने के साथ-साथ तुम्हारा दोस्त भी हूँ|"
"पापा कुछ महीनों से मैं एक लड़की के साथ चैट कर रहा था, शुरू शुरू में सब कुछ सही रहा, फिर वह मुझे थोड़ी परेशान लगने लगी !तो मैंने उससे कारण पूछा,
उसने मुझे कुछ आर्थिक कारण बताए तो मैंने इंसानियत के नाते उसकी मदद कर दी |इसके बाद वह निरंतर मुझसे पैसे मांगती रही और मैं इंकार ना कर सका|" बेटे की इतना कहने के बाद हमारे बीच सन्नाटा पसर गया|
मेरे फोन पर स्क्रीन चमकने लगी थी |पर इस वक्त बेटा ज्यादा जरूरी था|
आखिरकार मैंने ही बात को आगे बढ़ाया-" बताओ आगे क्या हुआ और कितना पैसा दिया है तुमने?"
"पापा लगभग ₹70000 ,पिछले हफ्ते से लगातार उससे कांटेक्ट कर रहा हूं मगर उसने मुझे ब्लॉक कर दिया है|"
इतना कहकर बेटा रोने लगा|
प्यार से उसके सर पर हाथ रखा -" पेपर में आए दिन इस तरह की खबरें आती रहती है बेटा ,मगर फिर भी तुम मायाजाल में फँस गए!! चलो कोई बात नहीं ,जो हुआ सो हुआ !पर आगे के लिए संभल कर रहना, मैं हर वक्त तुम्हारे साथ हूं यह बात याद रखना|"
स्क्रीन चमक कर फिर मुझे अपनी तरफ बुला रही थी,
हाथ कॉल उठाने के लिए आगे बड़े ही थे !
तभी बेटे की आवाज आई-" मुझे समझा कर आप खुद ही मायाजाल में फंस रहे हैं|"
चौक कर मैंने बेटे की तरफ देखा ,जैसे उसकी निगाहें मुझसे कुछ कह रही हो||
स्क्रीन अभी भी चमक रही थी| मेने तत्काल नंबर ब्लॉक कर ,लुटेरे हाथों से अपनी धन संपदा यानी अपने भविष्य और वर्तमान को मायाजाल से बचा लिया था|
स्वरचित रचाना अप्रसारित और अप्रकाशित
®© टीनू सुमन