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कुछ लड़के - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कुछ लड़के

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कुछ लड़के
हँसते हैं बाहर से पर..
मन ही मन रोते भी हैं बहुत
ज़िंदगी द्वारा दिए गए
असहनीय दर्द असमय पाकर।।

कुछ लड़के
जिन्हें नहीं मिलती अच्छी नौकरी
घर खर्च चलाने का बोझ भी रहता है सिर पर
वे लड़के जमाने की अनगिनत तीखी बातों को
सहनकर भी कर लेते हैं
कोई भी काम।।

कुछ लड़के
अन्य शहरी लड़कों की भाँति
मात-पिता से ऊंची आवाज़ में
बात नहीं करते हैं
बल्कि मात-पिता को
ईश्वर की भाँति पूजा करते हैं।।

कुछ लड़के
अन्य नकारात्मक विचारों से ओतप्रोत
लड़कों की तरह नहीं होते हैं
कुछ लड़के नारी को अपमानित नहीं
बल्कि नारी को उचित मान व सम्मान
अर्पित करते हैं।।

कुछ लड़के
अन्य लड़कों की भाँति कुपात्र नहीं होते हैं
बुढ़ापे में मात-पिता के सहारे की छड़ी
भी बनते हैं, मात-पिता की
देखभाल अच्छे से करते हैं।।

कुछ लड़के
धनाभाव के कारण अपनी ख़्वाहिशों की
आहुति देते हैं, खेलने-कूदने,पढ़ने की उम्र में
जिम्मेदारी का बोझ सिर पर रहता है
इसलिए..कुछ लड़के
ज़िंदगी के तमाम कष्ट सहन करते हैं
तन पर, पर चेहरे पर
हमेशा मुस्कान कायम रखते हैं।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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