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नामुमकिन कुछ भी नहीं - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायक

नामुमकिन कुछ भी नहीं

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नामुमकिन कुछ भी नहीं

सुबह के छ बजे हैं।बेरहम अलार्म बजने लगा है ।आज सोमवार की सुबह है, इतवार नहीं, उठना ही होगा..अलार्म अभी भी बज रहा है।
सीमा ने करवट ले ली,उसे तो दोपहर की शिफ्ट में जाना है।सुयश ने कसमसाते हुए रजाई खिसकाई ,खुद को गर्माहट से निकालने की जद्दोजहद की ...इसीमे पांच मिनिट और बीत गए।वह अच्छी तरह जानता है उन सरकते पलों की कीमत,मगर बला की ठंड ..उसकी सोच पर हावी हो रही है।अब और देर नहीं कर सकता।रजाई से पांव निकाले, फर्श पर रखे, ठंडे फर्श ने बदन में सिहरन भर दी।इससे पहले कि उसका इरादा बदले.. दौड़ कर बाथरूम में घुस गया।
बाथरूम के शीशे में अपने आप को देखा।शादी को पंद्रह बरस हो गए।वह बयालीस का नहीं ,बावन का दिखता है।उसे लंबी छुट्टी की या कम से कम कुछ आराम की ज़रूरत है।बरसों पहले सुबह की कसरत उसकी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा हुआ करती थी।वह सुबह जल्दी उठकर टहलने जाता,वहीं तगड़ी कसरत करता,घर आकर शॉवर लेता और बढ़िया नाश्ता करता।नाश्ता करते हुए दिन के अख़बार की सुर्खियां पढ़ता,तैयार होने और ऑफिस के लिए निकलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता।उसका ऑफिस काफी दूर था ।सुबह सड़क पर ट्रैफिक कम होने की वज़ह से आराम से रेडियो पर ख़बरें सुनते हुए साठ की स्पीड में गाड़ी चलाते हमेशा टाइम पर ही पहुंचता था।
उसने जल्दी से गीज़र चलाया।ब्रश करने और शेव करने तक पानी गर्म हो गया।शॉवर लेकर बाहर निकला ।कपड़े पहनते हुए सीमा पर एक निगाह डाली, वह अभी भी सो रही है। टाई की गांठ बांधते हुए अपने जीवन की गांठों को सुलझाने की कोशिश करने लगा।एक बार फिर ख़ुद को आईने में देखा।पहचानने की कोशिश की।
कहां ,क्या रीत रहा है ! कुछ तो है जो बदलाव चाहता है।
उसने सीमा को नहीं जगाया...
बाहर आकर , कार स्टार्ट की,सोचा रास्ते में कुछ खा लेगा ,चाय की तलब हो रही थी।
घर पर एक निगाह डाली।कभी यह घर उसे अपने सपनों का महल लगा था।शहर से थोड़ा दूर था मगर चारों और खुली जगह ,आगे लॉन था और टेरेस ने तो उसका मन मोह लिया था,दूर तक हरियाली ही हरियाली थी।
उसने घर के लॉन पर नजर डाली, बेतरतीबी से उगी खर पतवार और पड़ोसी का ताज़ा बना हुआ लॉन उसे मुंह चिढ़ा रहा था ।वह याद करने लगा आखिरी बार उसने लॉन की कटाई- छंटाई कब की थी !
दरअसल सुबह देर से ही उठ पाता है। दिन भर की आपाधापी के बाद दिन ढले घर लौटता है।अब ऐसे में लॉन की देखभाल कब करे ?गराज से निकाल , बिना कार को साफ किए ही कई बार चल पड़ता है।आज भी यही किया।
सीमा ने एक अंगड़ाई ली और घड़ी की ओर देखा 9:00 बज रहे हैं ।हर रोज वह यह सोच कर सोती है कि सुबह जल्दी उठेगी.. पति के लिए अच्छा सा नाश्ता बनाएगी ..दोनों साथ बैठकर चाय का आनंद लेंगे और कुछ बातें करेंगे..उसे याद नहीं उन्होंने आराम से बैठ कर कब बातें की थीं!10 घंटे स्टोर में खड़े रह कर,घर पहुंचने के बाद उसके अंदर ताकत ही नहीं बचती है कि वह सुबह 9:00 बजे से पहले बिस्तर छोड़ सके। वह उठी बाथरूम की ओर बढ़ी। वह सुबह तैयार होने से पहले अपने आपको आईने में नहीं देखती ...!
उसने अपना चेहरा धोया, ब्रश किया.. सोचने लगी ...
,काम पर निकलने से पहले घर के क्या काम कर सकती है ..फिर सोचा घर पर कौन है जो घर की देखभाल की जाए ? बस ब्रेड टोस्ट ,मक्खन लिया एक कप चाय । तैयार हो ही रही थी कि फोन की घंटी बज उठी, मिसेज बत्रा ने उसे याद दिलाया कि आज सेल में जाना है क्योंकि आज सेल का आखिरी दिन था। उसका मन सेल में जाने का बिल्कुल नहीं कर रहा था ..मगर पहले से कह रखा था तो जाना ही था ..घर में ताला लगा कर वह निकली।उसने देखा मिसेज बत्रा इंतेज़ार कर रही थीं। सेल में इतनी भीड़ थी मानो चीज़ें मुफ्त बंट रही हों।वैसे उसे किसी खास चीज़ की ज़रूरत नहीं थी ..फिर भी उसने तीन-चार डेकोरेटिव चीज़ें उठा लीं। उन चीज़ों को मिसेज बत्रा ने उचटती निगाह से देखा, वे बेहद मामूली और बिलो स्टैंडर्ड सामान था ...उंह.. काफी हिकारत से उन्होंने सीमा की चॉइस को देखा।वे सस्ती और बेकार की चीजें थी उनकी नज़र में ...! सीमा ने सामान पैक कराया ,मिसेज बत्रा से फिर मिलने का वादा कर वहां से निकली।बाहर थोड़ी खुशगवार धूप निकल आई थी,उसने कोट के बटन खोल दिए,स्कार्फ को भी ढीला किया,लंबे डग भर्ती हुई स्टोर के लिए पैदल ही चल पड़ी ।
रूटीन वर्क करते कब शाम हो गई ,यह थकान से ही महसूस हुआ।आज फिर थकी हुई लौटी। अपने बैग से सुबह की खरीदी हुई चीज़ों को निकाल कर डाइनिंग टेबल पर रखा और सोफे पर पसर गई ।कुछ देर बाद एक नज़र उसने उन चीज़ों को दोबारा देखा...उसे खुद भी वह चीज़ें कुछ ख़ास नहीं लग रही थीं,सिवाय उस लैंप के,बाकी चीज़ें तो बस ऐसे ही ले लीं।
उधर सुयश अपनी खटारा कार को
ट्रैफिक से बचता- बचाता ऑफिस पहुंचा ,जानता था मीटिंग में फिर लेट पहुंचेगा।लगभग दौड़ते हुए कॉफ्रेंस हाल में दाखिल हुआ।बॉस ने उसकी ओर देखा,बॉस की निगाह से पत्ते भी सूख जाते थे ... फिर वह क्या था !
बॉस ने अपनी घड़ी की ओर देखा और कहा , गुड आफ्टरनून,मुझे खुशी है कि आप मीटिंग में शामिल हुए।
अभी वह अपनी कुर्सी पर बैठा ही था कि बॉस ने मीटिंग समाप्त कर दी, उसकी ओर तल्खी से देखते हुए कहा,मैं इस प्रोजेक्ट पर आप सबकी प्रोग्रेस रिपोर्ट का लंच टाइम से पहले इंतज़ार करूंगा।

सुयश अपने क्यूबीकल में आ गया ,भुगतो बेटा,लेट लतीफी का अंज़ाम !अब क्या करे ? प्रोजेक्ट के बारे में तो वह कुछ भी नहीं जानता,क्या लिखे ?
दोपहर होने को आई ।आज तो नौकरी गई..बॉस वैसे भी उसकी आए दिन की देर से आने की शिकायतें सुन -सुन कर तंग आ चुका था,आज तो उसने ख़ुद उन्हें एक अवसर ही दे दिया था..
आज ख़ैर नहीं ....!
भला हो विशाल सहाय का , जिसने तरस खाकर सुयश को आज के प्रोजेक्ट के बारे में ब्रीफ किया। सुयश ने जल्दी से रिपोर्ट तैयार की, लेकर बॉस की टेबल पर पहुंचा। बॉस ने ऊपर से नीचे देखा , कहा कुछ नहीं । सुयश की जान में जान आई। अब उसे फिल्ड वर्क के लिए ऑफिस से निकलना था।बाहर ठंड थी ,हवा भी चल रही थी...मगर गुनगुनी धूप ने ठंड की तीव्रता को कुछ हद तक कम कर दिया था।उसने पार्किंग स्थल से कार निकाली और घर की ओर मोड़ दी। सुबह अपने लॉन की हालत देखी थी उसके बाद वह नहीं चाहता था कि उसके पड़ोसी उसका मज़ाक उड़ाएं।
घर पहुंच कर उसकी निगाह डाइनिंग टेबल पर पड़े हुए सामान पर पड़ी।वह सीमा की फिजूचलखर्ची से वैसे भी काफी परेशान था। शहर में कहीं सेल लगी हो,वह पहुंच जाती और ऊटपटांग सामान ख़रीद लाती।
उसने सीमा से पूछा , वह सब क्या था। सीमा ने चहक कर बताया कि, मिसेज बत्रा से मालूम हुआ कि 50% डिस्काउंट पर सेल चल रही थी इसलिए वह उन चीज़ों को खरीद लाई थी।
एक एंटीक लैंप के अलावा दो तीन सजावट की वस्तुएं थीं।सीमा ने लैंप को हाथ में लेते हुए कहा,"न जाने मुझे बचपन से ही इस तरह के लैंप से जिन्न के निकल आने वाली उम्मीद है!"ऐसा कहते हुए सीमा ने लैंप को उठाया और बच्चों सी उत्सुकता से ही घुमा- फिरा कर देखने लगी।
सुयश ने उन वस्तुओं पर एक नज़र डाली।सीमा के हाथ के लैंप और उसकी आंखों की चमक को देखते हुए कहा,"तुम अलादीन तो हो नहीं कि ,कहो, अबरा का डबरा और इस लैंप से जिन्न हाजिर ! खैर..चलो तुमको खुशी मिलती है तो ठीक है ,एक कोना इसके लिए भी......।"
यूं भी इस समय वह बहस के मूड में नहीं था।अच्छा था कि सीमा सुन नहीं रही थी।
सीमा ने धीरे -धीरे लैंप को रगड़ना शुरू किया... सुयश मुस्कुरा दिया।
सीमा झेंप गई और अपनी झेंप मिटाने की कोशिश में बोली,"वो फिल्म में देखा था न कि , ऐसे रगड़ते ही .. ..जिन्न हाजिर हो गया था...!"सीमा ने लैंप पर इस बार और भी ज़ोर की रगड़ दी....!
.... एक चौंधिया देने वाली रोशनी से कमरा भर गया,घर हिलने लगा...लगा भूकंप आ गया..! धुंआ ..धुंआ....जब धुंआ साफ हुआ.. उनके सामने कुछ- कुछ वैसा ही जिन्न नमूदार हुआ, जैसा फिल्म में देखा था,कुछ- कुछ वैसा जिन्न खड़ा था !!!!

"तु.. तु..तुम कौ..कौन.. हो ??... सीमा गिरते-गिरते बची, ऐन वक्त पर टेबल का कोना हाथ आ गया था।सुयश भी अचानक आए इस बवंडर से थर्रा गया था।
सुयश सीमा को कंधे का सहारा देते हुए ,सोफे पर ले आया।गला साफ करते हुए जिन्न से बोला,"...आप कौन हैं और... कहां से आए हैं ?"उसने एक नज़र बंद दरवाजों की ओर घुमाई।
"कहां से... कहां से आया हूं ?? आपने ही तो बुलाया..!
आदेश आका, आपने बुलाया,गुलाम दौड़ा आया।"वह अदब से बोला।
"क्यों..मेरा मतलब.. क...कहां से ....आए हो ???" सुयश अभी भी जो प्रत्यक्ष था ,उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
"कहां से आए हो ? अभी- अभी तो आपने देखा...आपके इस लैंप से .…!अदब से झुकते हुए जिन्न ने कहा, मेरे लिए क्या हुक्म है, फरमाइए।"
"हुकुम ? हम हुकुम दें ? हम...क्या ?.. .. जो हम देख रहे हैं.... क्या यह सच है..? और हम जो हुक्म देंगे ,उसे बजा लाओगे ?..... हम जो मांगे , मिल जाएगा.. ? क्यों ? हमारा मतलब कैसे ? दोनों अटक- अटक कर बोले,
कैसे..? हम...हम....कैसे मान लें यह हमारे साथ कोई मजाक नहीं है ?"

"तो लीजिए बानगी...अभी आपने चाय नहीं पी,चलिए पहले चाय हो जाए.... !"और डायनिंग टेबल पर चाय के साथ गरमागरम नाश्ता भी सज गया था !!!!
दोनों की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।कभी जिन्न को, कभी टेबल पर सजी चीज़ों को देख रहे थे।
सीमा ने चुप्पी तोड़ी....
"जिन्न,क्या तुम सचमुच जो हम मांगे, दे सकते हो ..?"
"हां.. जरूर ... तीन मांगे ,तीन ऐसी मांगे रखें जिन्हें आप खुद नहीं पूरा कर सकते ....
ऐसी मांगे.. तीन...आपकी तीन मांगे पूरी हो सकती हैं.. और अब मुझे बुलावा आ रहा है.. चलता हूं...विदा...।"और पलक झपकते ही वह उस लैंप में समा गया।
बहुत देर तक दोनों बुत बने बैठे रहे।क्या जो उन्होंने देखा ,सच था..क्या इस लैंप से सचमुच जिन्न अवतरित हुआ था? क्या वह मामूली सा दिखने वाला लैंप जादुई था ,क्या जिन्न उनकी ख्वाहिशें पूरी करेगा ?उनकी जिंदगी बदल जाएगी ? क्या वह सपना तो नहीं देख रहे थे ?
शादी के पंद्रह सालों के बाद आज फिर जीने की नई आस बंधती दिखी...! कोई विषय तो निकला जिस पर वे कुछ बात कर सकते थे।वे बहुत देर तक उसी विषय पर बातें करते रहे।
दूसरी सुबह दोनों ही जल्दी उठ गए ,सुयश पार्क चला गया।सीमा वाशिंग मशीन में कपड़े डालने लगी। गैस पर दूध भी चढ़ा दिया और पोहे की तैयारी करने लगी।सुयश को नाश्ते में पोहा बहुत पसंद था।
सुयश लौट कर आया तो चाय की चुस्कियों के साथ,जिन्न से कौन -कौन सी मांगे पूरी कराई जाएं ,इस पर चर्चा होने लगी।
पैसा.. हां,ढेर सारा पैसा मांगा जाए।पैसे से क्या नहीं खरीदा जा सकता? घर, गाड़ी, दुनिया की सैर,महंगे कपड़े,गहने ....हर तरह का एशो-आराम...
दूसरी मांग क्या हो..?
आपसी प्यार...हमेशा वैसा ही प्यार..जैसा शादी के शुरू के दिनों में था..पैसा हो और प्यार न हो ? बेमानी होगा..
दोनों ही इस पर सहमत हो गए..आखिर कौन नहीं चाहता एक प्रेम करने वाला साथी ?
तीसरी...तीसरी ख्वाहिश क्या हो..?
सीमा का सर घूमने लगा,आज के लिए इतना काफी था।जिन्न को बुलाया जाए और आगे की बाद में देखी जाएगी।
जिन्न को बुलाने की तरकीब तो पूछी ही नहीं थी...!अगर न बुला पाए तो...?
कई कोशिशें करने के बाद जिन्न प्रगट हुआ।
उसने पूछा, क्या उनकी मांगे तैयार हैं ?सीमा ने सुयश की ओर देखा और दोनों ने समवेत स्वर में कहा, "हां,तैयार हैं।"
"वाह बहुत खूब !तो मेहरबान,बताएं क्या है आपकी पहली ख्वाहिश ?"
"हम..हम चाहते हैं हमारे पास खूब धन,दौलत हो।"
"खूब, यानि ? खूब नहीं चलेगा, मेरे आका ,आपको बताना होगा ,कितना...?"
"अ...हमारा मतलब हम करोड़ों के मालिक हो जाएं..!"
"दूसरी ख्वाहिश...?"
"हम दोनों जितना पहले एक दूसरे को चाहते थे वैसे ही हमेशा चाहते रहें...!"
ओर तीसरी..?
"तीसरी ...तीसरी ..?"
"हम अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं।अगर हमें धन मिल जाता है और हमारी दूसरी इच्छा भी पूरी हो जाती ..तब तक हम तीसरी के विषय में फैसला कर लेंगे....।"
"नहीं, मैं आपको पहले ही बता चुका हूं कि आपको तीनों मांगे एक साथ ही रखनी हैं। मैं चलता हूं,जब आप किसी नतीजे पर पहुंचे तो मुझे याद कीजिएगा।"इससे पहले कि वे कुछ कहते
.. जिन्न गायब हो गया....!
सुयश और सीमा बहुत देर तक लैंप को देखते रहे जिसमें जिन्न समा गया था।अब तीसरी मांग भी तय कर लेनी चाहिए ,ऐसा न हो कि उनकी ये देरी बहुत भारी पड़ जाए ।
कुछ देर बाद सुयश उठा,उसने सीमा से तैयार होने को कहा,आज हम किसी अच्छी से होटल में खाना खायेंगे..अब तो जल्दी ही हम करोड़पति होने वाले हैं..!"
सीमा ने अपनी सबसे अच्छी ड्रेस पहनी,सुयश भी बहुत दिनों बाद ढंग से तैयार हुआ।
दोनों तैयार होकर शहर के बेहतरीन होटल पहुंचे। चुनिंदा डिशेज मंगवाईं।डिनर के दौरान भी तीसरी मांग के बारे में बीच -बीच में बात करते रहे।
घर लौट कर वे अपनी तीसरी मांग के बारे में सहमति पर पहुंच चुके थे।..
अगली सुबह वे बहुत जल्दी उठ गए,हाथों में हाथ डाल कर घर से निकले .. पार्क पहुंचे वॉक किया ।वहां से लौट कर सुयश लॉन में लग गया,कुछ देर में सीमा भी आ गई ।दोनों खुशी- खुशी पोधों की कटाई-छंटाई और निराई करने लगे।चंद घंटों में लॉन की छटा निखार आई।आज वे बहुत खुश थे।शाम हुई और वे बैठ गए लैंप के नजदीक और....अब
जिन्न का इंतज़ार खल रहा था .. क्या कर सकते थे !जिन्न आयेगा..?नहीं आयेगा? अगर नहीं आया तो ?? तभी सफेद झाग सा गुबार उठा,देखते ही देखते छत जितना ऊपर उठ गया,धीरे- धीरे झाग दूर हुई और जिन्न हाजिर...!
आज उसके हाथ में एक पुलिंदा था।उसने उस पुलिंदे को दिखाते हुए कहा,"आप जरूर सोच रहे होंगे ,यह क्या है..है न..?"
"हां, हां ,बिल्कुल ..!"
"ये रिकॉर्ड है उन लोगों का जिन्होंने आपकी ही तरह ढ़ेर सारा पैसा चाहा था,क्या आप जानना चाहेंगे, ढ़ेर सारा पैसा मिलने के बाद उनकी ज़िंदगी में कितनी तब्दीली आई ..? कितनी खुशियां या...?"
"जरूर...क्यों नहीं..!"
"मैं खुद कुछ नहीं कहता या करता ,ये रेकॉर्ड जो मेरे पास है ,मेरे बड़े आका का है ,इसे पढ़ कर सुनाता हूं...
ढेर सारा पैसा, वह भी जब बिना मेहनत के मिल जाता है ,मनुष्य को विनाश की ओर ले जाता है।ये ऐसे ही है, जैसे किसी को पीने के लिए ज़हर दे देना।
बिना पसीना बहाए जब पैसा मिलता है,मनुष्य उसकी अहमियत नहीं जान पाता।धन की लिप्सा भी कभी शांत नहीं होती,बढ़ती ही जाती है।यह पिपासा शांत न होने पर मनुष्य किसी भी सीमा तक जा सकता है।पैसा चैन और सुख देता भी है साथ ही साथ अनगिनत जिम्मेदारियां लाता है ....पैसा खुशी का पर्याय नहीं है।"
"मगर...जिन्न...तुम नहीं जानते....तुम ..तुम क्या जानो..गरीबी क्या है..गरीबी अभिशाप है... !"
"मानता हूं.. अधिकता दुख दायक है,अमीरी की भी और गरीबी कि भी...!
अब बारी है आपकी दूसरी ख्वाहिश की...आपके रिश्ते पहले जैसे हो जाएं....! रिश्ते बहुत नाज़ुक डोर से बंधे होते हैं, कहते हैं रेशम की डोर से बंधे होते हैं ,जरा सी चूक, और इनमें गांठे पड़ जाती हैं.. खोलने की कोशिश में और उलझ जाते हैं, और कभी तो टूट भी जाते हैं।रिश्ते बेहद देखरेख, साज- संभाल चाहते हैं.. पोधों की तरह..थोड़ी सी देखरेख में कमी हुई कि..कीड़े लग गए,पानी कम मिला.... , सूख
गए...,तराशा नहीं....इधर उधर मुड गए..!...रिश्ते अच्छे रखने का मूल मंत्र है ....अपने साथ जैसा व्यवहार चाहते हो,वैसा ओरों के साथ करो।
रिश्तों में कभी दूरी, और गलतफहमी न आने दो। एक दूसरे से बातचीत करते रहो...बातचीत बंद करना , दूरियां बढ़ाता है।समस्या का समाधान न करना ,समस्या को बढ़ाना है..शुतुरमुर्ग की तरह.. ज़मीन में सर धंसा लेने से सोचना कि तूफान गुजर गया, कोई नुक्सान नहीं हुआ, ऐसा नहीं है।तूफान अपने साथ बहुत कुछ ले जाता है।प्रेम को बनाए रखना है तो ..क्षमा और माफी का मूलमंत्र याद रखो।
क्षमा और माफी संबंधों को प्रगाढ़ करते हैं,गुस्से को पालना,खुद को ..और अपनों को नुक़सान पहुंचाना
है।..
जिन्न ने आंखें उठाकर दोनों की ओर देखा...वे अपलक उसे ही देख रहे थे।
तो अब आपकी आखिरी ख्वाहिश ..अच्छी तरह विचार लें..तथास्तु या आमीन..के बाद पछताना न पड़े.....!"
"हम..हम चाहते हैं अपने पसंदीदा काम करना..मै शुरू से ही डिज़ाइनर बनना चाहती थी...मगर कर रही हूं स्टोर में दस घंटों की नौकरी.. मुझे नफ़रत है नौकरी से।"
"और मैं...
,सुयश बोला, मैं चाहता था एक संगीत अकादमी चलाना... और दो वक़्त की रोटी के लिए क्या कर रहा हूं.... ओके सर, यस सर ...
जिन्न भाई ,मेहरबानी करो और बताओ कि हमें ढेर सारा धन कब मिलेगा ?"
"मेरे आका,आप शायद भूल रहे हैं,मैने कहा था आप वे चीजें ..मांग सकते हैं जो आप खुद हासिल नहीं कर सकते... मैं यह लिफाफा छोड़ कर जा रहा हूं, इसे गौर से पढ़िएगा..और हां... लेकिन अभी नहीं ,मेरे जाने के बाद..।"
इतना कहते ही , बिना एक पल गंवाए वह फिर गायब हो गया।
उन दोनों की समझ में नहीं आया कि उनके साथ यह क्या हो रहा था !सुयश उठ कर लैंप को जोर- ज़ोर से रगड़ने लगा,सीमा जितने मंत्र जानती थी, जप सकती थी, जपने लगी मगर ....जिन्न को नहीं लौटना था...नहीं लौटा।
उन्होंने टेबल से लिफाफा उठाया ...खोला.. पढ़ने लगे..
आप दोनों बहुत अच्छे इंसान हैं।असल में हर इंसान अच्छा होता है,बस वह अपने को..अपनी अच्छाइयों ..को,अपनी ताकत को पहचानने में सही या ग़लत हो जाता है..गलत निर्णय ले लेता है..और..
और जिंदगी को तबाह कर लेता है या संवार लेता है।
मेरे ख़्याल से आप तैयार हैं इस बात के लिए कि आपको जीवन कैसे जीना है... यह पूरा का पूरा आप पर निर्भर करता है।ये आपके ही हाथ में है।
आप एक अच्छे जीवन के हकदार हैं।आप जो चाहते हैं उसे पाने से आपको कोई नहीं रोक सकता, सिवाय आपके ...
अलविदा....
अलविदा....! यह कैसा मजाक था ?
समय हमारे अनुमान से भी ज्यादा तेजी से गुजर जाता है... उन्हें जिन्न से मिले हुए 5 साल हो गए थे ।वह अक्सर उसकी बातें करते। अब उनके पास सब कुछ था.. महल जैसा घर उसमें विशाल कमरे और विशेषकर बड़ा सा लिविंग रूम जहां एक महोगनी टेबल पर सजा था लैंप ...वही लैंप , जो उस घर की आलीशान सजावट में कहीं फिट नहीं बैठता था । आने- जाने वाले मेहमान उसके बारे में अक्सर पूछते तो सीमा और सुयश एक दूसरे को मुस्कुरा कर ,अर्थ भरी नज़र से देखते ।
दुनिया की कौन सी विलासिता का सामान उनके पास नहीं है ?..एक बड़ा घर ,गाड़ी ,नौकर- चाकर और सबसे ज्यादा - एक दूसरे के प्रति कभी ना खत्म होने वाला प्रेम।दोनों मनचाहा काम भी कर रहे हैं ।
सीमा की डिजाइनिंग की दूर- दूर तक ख्याति है ।वह सेलिब्रिटीज के घरों की डिजाइन करती है ,और सुयश, उसे तो अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया है। उसकी अकैडमी में इस समय 1000 विद्यार्थी हैं ,जो अनेक विधाओं में निपुणता हासिल कर रहे हैं ।
आज फिर जनवरी का महीना है।हाड कंपा देने वाली सर्दी है।ठंडी हवा बह रही है,दरवाज़े पर दस्तक होती है।लगातार कोई दरवाज़ा खटखटाये जा रहा है।शायद कोई निराश्रित आसरे की उम्मीद में,या कोई भूखा खाने की आस में दरवाज़ा खटखटा रहा है। उनके दरवाज़े से कोई खाली नहीं जाता इस बात को सभी जानते हैं।
बरसों पहले उस जिन्न ने उन्हें उनकी क्षमताओं से रूबरू कराया था ,दोनों में खोया प्यार ही नहीं विश्वास भी लौटाया था...बस तबसे दोनों सीख चुके हैं कि किस तरह जीवन से निराश लोगों में आशा का संचार करना है। कैसे व्यक्ति में अपने प्रति विश्वास को जगाना है।
सीमा ने जल्दी से दरवाज़ा खोला ,बाहर मैले कुचैले कपड़े पहने एक व्यक्ति खड़ा था।देखने से जान पड़ता था,कई दिनों से सोया नहीं था ,भूखा था और शायद बीमार भी था ।उसने उसे आदरपूर्वक अंदर बुलाया, हीटर के पास बैठाया, तुरंत गर्म कपड़े पहनने को दिए ,भोजन कराया ,जाने लगा तो उन्होंने कहा ,किसी वस्तु की जरूरत हो तो मांगे,झिझक न करे।
उसने कहा,"चाहता हूं दुनिया में आप ही की तरह और लोग भी रहमदिल हों,जो गरीबों और अनाथों के
मददगार हों।काश,दुनिया से गरीबी दूर हो दुनिया ... में अमन चैन हो, ...दुनिया में कोई भूखा न रहे।"
सीमा और सुरेश ने एक दूसरे की ओर देखा ।यह इंसान तो अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता , जो चाहता है दूसरों के लिए ही।जिन्न भी तो दूसरों के सुख के लिए आया था।जिन्न जरूर इसकी इच्छा पूरी करेगा क्योंकि दुनिया से भूख,गरीबी,नफरत की लड़ाई यह अकेला तो लड़ नहीं सकता।
इतना विचार आते ही ,सीमा लपक कर महोगनी टेबल तक गई , उस लैंप को उठाया,उस पर आखिरी बार प्यार से हाथ फेरा..
और उठा कर उस अनजान व्यक्ति के हाथ में दे दिया।
मैं इस पुराने लैंप का क्या करूंगा ..? अजनबी ने सोचा।मगर इतने दयालु और मेहरबान लोगों को इंकार न कर सका।उसने वह लैंप ले लिया और उनका धन्यवाद देता हुआ सड़क पर आ गया । वे दोनों उसे जाता हुआ देखते रहे ....
दूर तक ....और उन्होंने देखा कि वह पुराना घिसा हुआ लैंप एक बार फिर चमक रहा था।
गीता परिहार
अयोध्या

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दादी की परी
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