Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
ये तज़ुर्बा कुछ और है - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितागजल

ये तज़ुर्बा कुछ और है

  • 189
  • 3 Min Read

चाहें सारा जहां छान लो,ये तजुर्बा कुछ और है।
सामने ख़ुदा है,मगर दिल ने कहा, कुछ और है।

ये नोबत ही तो है,जो चेहरे बदल देती है,
कल के किसी खूब की,आज अदा, कुछ और है।

क्यूं ढकते हैं वो? हिजाब से अपने ज़ख्मों को,
हरक़त तो जनाब की, करती बयां, कुछ और है।

कल्ब की ये उदास ज़मीं,जो भीगी है बहुत,
के रात भर सोने का,ये बहाना, कुछ और है।

क्या इबादत,क्या शराफत,सब है गीर्दाब में,
अब यकीन है,तकदीर का रवैया, कुछ और है।

आदमी का ये क्या हाल,के सब मज़बूर यहां,
चाहत की हथेली पर,ये इंसा, कुछ और है।

फरेबी बातें, यहां कितनी है, कितनी नापें,
तर्स के शूल पर “मनी”,ये ज़माना, कुछ और है।
शिवम राव मणि ©

logo.jpeg
user-image
Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg