कहानीसामाजिकसस्पेंस और थ्रिलरप्रेरणादायक
धारावाहिक
नामुमकिन कुछ भी नहीं
भाग 4.
यूं भी इस समय वह बहस के मूड में नहीं था।अच्छा था कि सीमा सुन नहीं रही थी।
सीमा ने धीरे -धीरे लैंप को रगड़ना शुरू किया... सुयश मुस्कुरा दिया।
सीमा झेंप गई और अपनी झेंप मिटाने की कोशिश में बोली,"वो फिल्म में देखा था न कि , ऐसे रगड़ते ही .. ..जिन्न हाजिर हो गया था...!"सीमा ने लैंप पर इस बार और भी ज़ोर की रगड़ दी....!
.... एक चौंधिया देने वाली रोशनी से कमरा भर गया,घर हिलने लगा...लगा भूकंप आ गया..! धुंआ ..धुंआ....जब धुंआ साफ हुआ.. उनके सामने कुछ- कुछ वैसा ही जिन्न नमूदार हुआ, जैसा फिल्म में देखा था,कुछ- कुछ वैसा जिन्न खड़ा था !!!!
"तु.. तु..तुम कौ..कौन.. हो ??... सीमा गिरते-गिरते बची, ऐन वक्त पर टेबल का कोना हाथ आ गया था।सुयश भी अचानक आए इस बवंडर से थर्रा गया था।
सुयश सीमा को कंधे का सहारा देते हुए ,सोफे पर ले आया।गला साफ करते हुए जिन्न से बोला,"...आप कौन हैं और... कहां से आए हैं ?"उसने एक नज़र बंद दरवाजों की ओर घुमाई।
"कहां से... कहां से आया हूं ?? आपने ही तो बुलाया..!
आदेश आका, आपने बुलाया,गुलाम दौड़ा आया।"वह अदब से बोला।
"क्यों..मेरा मतलब.. क...कहां से ....आए हो ???" सुयश अभी भी जो प्रत्यक्ष था ,उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
"कहां से आए हो ? अभी- अभी तो आपने देखा...आपके इस लैंप से .…!अदब से झुकते हुए जिन्न ने कहा, मेरे लिए क्या हुक्म है, फरमाइए।"
"हुकुम ? हम हुकुम दें ? हम...क्या ?.. .. जो हम देख रहे हैं.... क्या यह सच है..? और हम जो हुक्म देंगे ,उसे बजा लाओगे ?..... हम जो मांगे , मिल जाएगा.. ? क्यों ? हमारा मतलब कैसे ? दोनों अटक- अटक कर बोले,
कैसे..? हम...हम....कैसे मान लें यह हमारे साथ कोई मजाक नहीं है ?"
"तो लीजिए बानगी...अभी आपने चाय नहीं पी,चलिए पहले चाय हो जाए.... !"और डायनिंग टेबल पर चाय के साथ गरमागरम नाश्ता भी सज गया था !!!!
दोनों की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।कभी जिन्न को, कभी टेबल पर सजी चीज़ों को देख रहे थे।
सीमा ने चुप्पी तोड़ी....
"जिन्न,क्या तुम सचमुच जो हम मांगे, दे सकते हो ..?"
"हां.. जरूर ... तीन मांगे ,तीन ऐसी मांगे रखें जिन्हें आप खुद नहीं पूरा कर सकते ....
ऐसी मांगे.. तीन...आपकी तीन मांगे पूरी हो सकती हैं.. और अब मुझे बुलावा आ रहा है.. चलता हूं...विदा...।"और पलक झपकते ही वह उस लैंप में समा गया। क्रमशः.....