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नामुमकिन कुछ भी नहीं - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकसस्पेंस और थ्रिलरप्रेरणादायक

नामुमकिन कुछ भी नहीं

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नामुमकिन कुछ भी नहीं (धारावाहिक)
भाग 3.
रूटीन वर्क करते कब शाम हो गई ,यह थकान से ही महसूस हुआ।आज फिर थकी हुई लौटी। अपने बैग से सुबह की खरीदी हुई चीज़ों को निकाल कर डाइनिंग टेबल पर रखा और सोफे पर पसर गई ।कुछ देर बाद एक नज़र उसने उन चीज़ों को दोबारा देखा...उसे खुद भी वह चीज़ें कुछ ख़ास नहीं लग रही थीं,सिवाय उस लैंप के,बाकी चीज़ें तो बस ऐसे ही ले लीं।
उधर सुयश अपनी खटारा कार को
ट्रैफिक से बचता- बचाता ऑफिस पहुंचा ,जानता था मीटिंग में फिर लेट पहुंचेगा।लगभग दौड़ते हुए कॉफ्रेंस हाल में दाखिल हुआ।बॉस ने उसकी ओर देखा,बॉस की निगाह से पत्ते भी सूख जाते थे ... फिर वह क्या था !
बॉस ने अपनी घड़ी की ओर देखा और कहा , गुड आफ्टरनून,मुझे खुशी है कि आप मीटिंग में शामिल हुए।
अभी वह अपनी कुर्सी पर बैठा ही था कि बॉस ने मीटिंग समाप्त कर दी, उसकी ओर तल्खी से देखते हुए कहा,मैं इस प्रोजेक्ट पर आप सबकी प्रोग्रेस रिपोर्ट का लंच टाइम से पहले इंतज़ार करूंगा।

सुयश अपने क्यूबीकल में आ गया ,भुगतो बेटा,लेट लतीफी का अंज़ाम !अब क्या करे ? प्रोजेक्ट के बारे में तो वह कुछ भी नहीं जानता,क्या लिखे ?
दोपहर होने को आई ।आज तो नौकरी गई..बॉस वैसे भी उसकी आए दिन की देर से आने की शिकायतें सुन -सुन कर तंग आ चुका था,आज तो उसने ख़ुद उन्हें एक अवसर ही दे दिया था..
आज ख़ैर नहीं ....!
भला हो विशाल सहाय का , जिसने तरस खाकर सुयश को आज के प्रोजेक्ट के बारे में ब्रीफ किया। सुयश ने जल्दी से रिपोर्ट तैयार की, लेकर बॉस की टेबल पर पहुंचा। बॉस ने ऊपर से नीचे देखा , कहा कुछ नहीं । सुयश की जान में जान आई। अब उसे फिल्ड वर्क के लिए ऑफिस से निकलना था।बाहर ठंड थी ,हवा भी चल रही थी...मगर गुनगुनी धूप ने ठंड की तीव्रता को कुछ हद तक कम कर दिया था।उसने पार्किंग स्थल से कार निकाली और घर की ओर मोड़ दी। सुबह अपने लॉन की हालत देखी थी उसके बाद वह नहीं चाहता था कि उसके पड़ोसी उसका मज़ाक उड़ाएं।
घर पहुंच कर उसकी निगाह डाइनिंग टेबल पर पड़े हुए सामान पर पड़ी।वह सीमा की फिजूचलखर्ची से वैसे भी काफी परेशान था। शहर में कहीं सेल लगी हो,वह पहुंच जाती और ऊटपटांग सामान ख़रीद लाती।
उसने सीमा से पूछा , वह सब क्या था। सीमा ने चहक कर बताया कि, मिसेज बत्रा से मालूम हुआ कि 50% डिस्काउंट पर सेल चल रही थी इसलिए वह उन चीज़ों को खरीद लाई थी।
एक एंटीक लैंप के अलावा दो तीन सजावट की वस्तुएं थीं।सीमा ने लैंप को हाथ में लेते हुए कहा,"न जाने मुझे बचपन से ही इस तरह के लैंप से जिन्न के निकल आने वाली उम्मीद है!"ऐसा कहते हुए सीमा ने लैंप को उठाया और बच्चों सी उत्सुकता से ही घुमा- फिरा कर देखने लगी।
सुयश ने उन वस्तुओं पर एक नज़र डाली।सीमा के हाथ के लैंप और उसकी आंखों की चमक को देखते हुए कहा,"तुम अलादीन तो हो नहीं कि ,कहो, अबरा का डबरा और इस लैंप से जिन्न हाजिर ! खैर..चलो तुमको खुशी मिलती है तो ठीक है ,एक कोना इसके लिए भी......।"क्रमशः......

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दादी की परी
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