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कुछ अच्छे में, कुछ अजीब भी था - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितागजल

कुछ अच्छे में, कुछ अजीब भी था

  • 242
  • 2 Min Read

कुछ अच्छे में, कुछ अजीब भी था ,
धुंधला-धुंधला वो करीब भी था ।

ना फहम हुआ, ना ही याद आया,
ख्वाब था कोई या नसीब भी था ।

एक लौ उठी, तो अन्धेरा जला,
यूँ रहबर मेरा नजीब भी था।

दुनिया कभी गैर है, कभी अपनी,
दरारो मे छुपा वो अदीब भी था।

एक जर्ब है मुझे क्यों, ये ना पूछो,
खुदा गवाह है ‘मनी’ गरीब भी था।

©शिवम राव मणि

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

लाजवाब

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद सर

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