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अजनबी - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कवितागजल

अजनबी

  • 187
  • 2 Min Read

बेगाने से शहर में मिला था वो अजनबी
शायद मेरी दुआ का सिला था वो अजनबी

बिखरे हैं मेरी राह में कांटे इधर उधर
कांटों के बीच गुल सा खिला था वो अजनबी

गिरने लगीं यकीन की दीवार खोखली
चट्टान सा ज़रा न हिला था वो अजनबी

मुस्कान था किसी की किसी की हंसी भी था
हद ये भी कुछ दिलों का गिला था वो अजनबी

जख्मों का सिलसिला हो गई उसकी रहबरी
हर बार मुझ से पहले छिला था वो अजनबी

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

उत्तम

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

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