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हस्तांतरण - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

हस्तांतरण

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हस्तांतरण

एक अरसे से बंद पड़ी लाइब्रेरी में कुछ लोगों का आगमन हुआ था। "लगता है अब तुम्हारे दिन बदलने वाले हैं।" धूल की परत चढ़ी मेज पर रखी कलम उन्हें देख चहकती हुई किताब से बोली।
"तुम्हें सच में ऐसा लगता है?" किताब के स्वर में निराशा तारी थी।
"हां! क्यों नहीं! इन्हें अब भी तुम्हारी जरूरत है। आखिर सारा ज्ञान तुममें ही तो समाहित है।" कलम ने हौसला दिखाया।
"नहीं! अब मेरा ज्ञान इंसान के हाथ की शोभा बने मोबाइल ने सोख लिया है। अब इंसान को मेरी कोई जरुरत नहीं।"
"तो फिर ये क्यों आए हैं हमारी शांत ज़िन्दगी में ख़लल डालने?"
"मेरा ये आशियाना ज्ञान के इस आधुनिक स्त्रोत को सौंपने। अब यहां लाइब्रेरी की जगह मोबाइल का शोरूम बनेगा।" किताब व्यंग्य से बोली।
"तो...तो अब तुम कहां जाओगी?" कलम ने घबरा कर पूछा, किताब के बिना उसे अपना अस्तित्व भी खतरे में महसूस हो रहा था।
किताब कुछ न बोली बस मुस्कुरा कर सड़क पर खड़े रद्दी वाले की ओर इशारा कर दिया।

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बढ़िया, चिन्तन युक्त

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत अच्छी पोस्ट किताबें अब ई-लाइब्रेरी में सीमित होती जा रही है, लेकिन पुस्तकों का महत्व कम नहीँ होगा. पुस्तकों के स्वरूप, उसका मूर्त रूप अपने आप में सदैव आकर्षित करेगा..!

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया सर

दादी की परी
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