कविताअतुकांत कविता
नहीं तुम ईश्वर नहीं
हां पिता तुम ईश्वर नहीं
क्योंकि साकार हो तुम निराकार नहीं
तुम मेरे हो बस मेरे
मेरे ही तो हो
मैं कृति हूं तुम्हारी
और तुम रचनकार मेरे
तभी तो पिता
तुम बसते हो अंतर्मन में मेरे
और झलकते हो सर्वांग अस्तित्व से मेरे
दुनिया तुम्हारी सीमित बस मुझ तक
विस्तार उसका सुदूर ब्रह्मांड तक नहीं
बांट रखा है तुमने
अपना प्रेम बेशक हज़ार हिस्सों में
पर आश्चर्य मेरे हिस्से का
कोई और हिस्सेदार नहीं
पल पल तुमने संवारा मुझे
कदम कदम तुम्हीं ने संभाला मुझे
बना कर खुदको सीप
मोतियों सा निखारा मुझे
फ़िर भी पिता तुम ईश्वर नहीं
क्योंकि साकार हो तुम निराकार नहीं