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अमृत-रस-धार - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

अमृत-रस-धार

  • 275
  • 30 Min Read

अमृत-रस-धार



अस्पताल के प्रसूती कक्ष के बगल में स्थित वार्ड में बिस्तर पर मां की बगल में लेटा नवजात शिशु। गीली माटी के लोंदे सा अनगढ़, सेमल रुई के फाहे सा नर्म। रंग ऐसा गुलाबी कि मानो दूध की मलाई में एक चुटकी लाल रंग घोल दिया हो किसी ने। नाजुक से कपोल और लाल-लाल अधर, हाथों-पैरों की नाजुक-नाजुक उंगलियां और काले-काले बाल।
पहली नज़र में देखो तो बिल्कुल बाल कृष्ण की छवि को अपने भीतर समाए, अपनी बड़ी-बड़ी आंखे मटकाकर हैरानी से चारों ओर देख रहा था। शायद अपने आस-पास का माहौल को समझने का प्रयत्न कर रहा था। सब-कुछ अलग-अलग सा लग रहा था उसे, कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर वह कहां आ गया। अभी कुछ देर पहले वह जहाँ था वहां इतनी रोशनी नहीं थी और जगह भी ज़रा तंग सी थी। ज़रा क्या! इतनी छोटी थी कि हाथ-पैर भी ढ़ंग से हिलते न थे। यहां तो खूब खुली जगह है। उसने हाथ-पैर फैला कर एक भरपूर अंगड़ाई ली।
‘उफ्फ कितनी ज्यादा रोशनी है यहां, आंखें ही चूँधिया गईं।‘ बार- बार प्रयास करने पर भी वह अधिक देर तक अपनी आंखें खुली नहीं रख पा रहा था। ना जाने क्यों उसकी पलकें खुद ब खुद बंद हो रही थीं। इसी प्रयास में बार-बार मिचमिचाने से उसकी आंखें कुछ छोटी हो चली थी। मगर छोटी होती इन आंखों की परवाह किसे थी। वह तो बस इतना जानना चाहता था कि वह यहां क्यों है? उसके जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन! क्यों? वह पहले जहां था वहां थोड़ी असुविधा थी, मगर वहां वह खुदको बेहद सुरक्षित महसूस करता था। उस सुरक्षा भाव का यहां दूर दूर तक नहीं है। क्यों? उसे समझ नहीं आ रहा था।
अचानक उसे ध्यान आया माँ कहां है? उसने किसी तरह अपनी आंखें खोलीं और अपनी माँ को ढ़ूढ़ने के लिए हर तरफ नजर दौड़ाई, बगल में ही लेटी माँ को देखकर उसे कुछ तसल्ली हुई। अपना नाज़ुक सा हाथ बढ़ाकर उसने मां को छुआ। उसके स्पर्श से, अर्धमूर्छित माँ कुनमुनाई तो ज़रुर पर दवा के असर के कारण उठ ना सकी। शिशु कुछ आश्चर्य से माँ को देखता रहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि जो माँ बस कुछ दिन पहले तक उसकी धड़कनों को भी महसूस कर सकती थी अब वह उसके स्पर्श पर भी कोई प्रतिकृया व्यक्त क्यों नहीं कर रही है?
‘क्या माँ ने मुझे छोड़ दिया?’ मन में यह विचार आते ही घबरा सा गया नन्हा शिशु। उसका मन चीत्कार कर उठा। ‘हे ईश्वर! ये क्या हो गया? मेरी माँ से दूर कर तुमने मुझे मेरी किस भूल की सजा दी है? अब! अब मैं क्या करुंगा’। डर गया वह, यह डर उसके कोमल मन पर कुछ इस कदर हावी हुई कि उसकी रुलाई फूट पड़ी।
शिशु का रुदन सुन कुछ साए उसके आस-पास मंडराने लगे। दादी उसे गोद में लेकर दुलारने लगी तो नानी उसकी बलैयां ले रही थी। तभी किसी ने कहा,’ शायद बच्चा भूखा है, इसीलिए इतनी जोर से रो रहा है।’ यह सुनकर दादी उसे कटोरी-चम्मच से दूध पिलाने लगी। पेट भरने के बाद शिशु की सोच पर नींद हावी होने लगी। नींद से बोझिल होती पलकों के साथ वह दादी-नानी की गोद में भी अपनापन महसूस करने लगा।
माँ की बेहोशी टूट चुकी थी और वह अब खुदको काफी स्वस्थ महसूस कर रही थी। वह झूले में लेटे शिशु को बहुत प्यार से निहार रही थी। अपने इस सृजन को देख कर वह निहाल हो गई। वह अपने बिस्तर से उठी और उसने बच्चे को अपनी बांहों में उठा लिया और वापस बिस्तर पर आकर बैठ गई। उसके मन में जैसे भावनाओं का ज्वार उठ रहा था। बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि इस दुनिया में सृजन का अधिकार या तो ईश्वर का है या फ़िर स्त्री जाति का, और शायद उनके लिए इससे बड़ा गौरव और कुछ नहीं है। आज अपने शिशु को अपनी गोद में लेकर वह भी खुदको गौरवान्वित महसूस कर रही थी।
बच्चा भी अपनी माँ को टुकुर-टुकुर निहार रहा था। उसे इस तरह अपनी ओर ताकते देख मां को हंसी आ गई। ‘ऐसे क्या देख रहा है? मैं तेरी माँ हूँ पहचाना मुझे? हम दोनों कितनी बातें किया करते थे, इतनी जल्दी भूल गया सब कुछ, बुद्धू कहीं का।’ प्यार भरा उलाहना देते हुए माँ ने अपने लाड़ले के गाल कोमलता से सहला दिया।
इस स्पर्श को जैसे पहचान गया बालक और होले से मुस्कुरा दिया। उसके अधरों पर खिली इस मासूम मुस्कान को देख कर माँ तो निहाल ही हो गई। ‘मुस्कुराता है, अपनी मां को देख कर हंसता है, बदमाश।' और वह भी हंस दी। माँ अपने बच्चे को इतने नजदीक से देख कर जैसे बौरा ही गई। आज तक वह जिसे वह अपने अन्दर महसूस करती रही। जो अब तक केवल उसकी कल्पना में था, अब वह उसकी गोद में आ चुका था।
कभी वह हंसने लगती तो कभी उसकी आंखों में आंसू भर आते। क्यों? वह समझ नहीं पा रही थी। शायद खुशी के आंसू इन्हें ही कहते हैं। बच्चे तो उसने पहले भी कई देखे मगर कोई भी इतना प्यारा, इतना अपना कभी नहीं लगा। इस पल उसे वह कहावत याद आ गई, ‘दुनिया में एक ही बच्चा खुबसूरत है और वह हर मां की गोद में है।’ आज उसे इस कहावत का मतलब समझ में आया। सच उसका बच्चा दुनिया में सबसे प्यारा था।
इस समय उसकी खुशी का कोई पारावार नहीं था। अपने इस आनन्द में मगन उसे अपने आसपास की दुनिया की जैसे कोई फिक्र ही नहीं थी। वह बावरी सी कभी बच्चे को सहलाने लगती तो कभी उसे चूमने लगती। “देखो इसे बच्चे के प्यार में कैसे बावली हुई जा रही है। इसे इस तरह चूमने से, प्यार करने से, क्या इसका पेट भर जाएगा? इसका पेट तो दूध से भरेगा, समझी। भूखा है ये, इसे दूध पिलाओ।” बच्चे की दादी ने अपनी बहू को एक मीठी सी झिड़की दी फिर उसे बच्चे की उदरपूर्ति का तरीका समझाने लगी।
कुछ शर्माई, कुछ सकुचाई सी मां ने शिशु को अपने आंचल में समेट लिया। वह कुछ असमंजस में थी, 'पता नहीं वह ठीक से बच्चे को दूध पिला सकेगी या नहीं। जाने शिशु को भी ठीक से दूध पीना आएगा या नहीं।' ऐसे जाने कितने ही सवाल उसके मन में घूम रहे थे। 'कितना छोटा सा तो है, यह बेचारा कैसे समझेगा कि कैसे दूध पीते हैं। कहीं भूखा ही ना रह जाए। मांजी को इसे कटोरी-चम्मच से ही दूध पिला देना चाहिए। अभी वही ठीक रहेगा।' किससे कहे मांजी तो कब की कक्ष से बाहर जा चुकीं थीं।
मां की सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं। उसके भीतर समाई सारी ममता जैसे दूध बन कर शिशु की उदरपूर्ति हेतु लालायित थी।
शिशु भी जैसे पहले से ही सब-कुछ जाना-समझा था। वह मां के आंचल में मुंह छुपा कर हौले-हौले दूध पीने लगा। दूध की एक-एक बूंद किसी अमृत-रस-धार की तरह न केवल उसकी भूख मिटा रही थी बल्कि उसके मन और आत्मा को भी तृप्त कर रही थी। साथ ही साथ उसे यह तसल्ली भी दे रही थी कि उसे उसकी मां से किसी ने दूर नहीं किया है। ना ही उसकी मां ने उसे छोड़ा है, बल्कि अब तो वह अपनी मां के और भी करीब आ गया है। अब वह अपनी मां को देख सकता है, उसे छू सकता है, अब वह अपनी मां की बांहों में खेल भी सकता है।
अपनी सारी आशंकाएं दूर होने के बाद शिशु के होठों पर एक मधुर मुस्कान आ गयी, मानो वह अपनी मां का दिल से धन्यवाद कर रहा हो, उसे इस दुनिया में लाने के लिए, इतना प्यार करने के लिए। और सबसे अधिक उस दूध रूपी अमृत-रस-धार के लिए जो सिर्फ और सिर्फ उसी की उदरपूर्ति हेतु थी। जिस पर सिर्फ और सिर्फ उसी का हक था। मां की गोद ने शिशु के मन में एक असीम सुख और सुरक्षा का भाव पैदा कर दिया और वह मां के आंचल में मुंह छुपा कर चैन से सो गया।

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

विलक्षण

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 3 years ago

इस रचना को पढ़कर मन में उत्पन्न विचार को शब्दों के माध्यम से पीरो पाने में असमर्थ हूँ। अभी-अभी जन्मे नन्हे बालक के मन की व्यथा माँ के प्रति प्यार के भाव का क्या खूब वर्णन किया गया है इस रचना में। पाठक के मन में एक अप्रतिम एहसास जागृत करने वाली यह रचना वाकई में उत्कृष्ट है।✍️??

Ankita Bhargava3 years ago

सार्थक टिप्पणी के लिए शुक्रिया संदीप जी

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बालरूप चित्रण ने मानो अमृत रस धार भर दी र्

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया मैम

Manpreet Makhija

Manpreet Makhija 3 years ago

मेरी आँखों मे आँसू और चेहरे पर मुस्कान आ गई। एक एक शब्द को जी लिया मैंने। बहुत बहुत बहुत खूब

Ankita Bhargava3 years ago

आपकी टिप्पणी ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर भाव..!!

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर भाव..!!

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया सर

दादी की परी
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