कवितागजल
पत्ते डाली से टूट जाते हैं
हिज्र में हाथ छूट जाते हैं
मोती शबनम के कैसे नाज़ुक से
फूल पर गिर के फूट जाते हैं
ख़्वाब यूं तो हसीन है लेकिन
टूट कर चैन लूट जाते हैं
जब भी कोशिश करूं कहूं मैं कुछ
वक्त पर लफ़्ज़ छूट जाते हैं
यूं न ख़ामोश तुम रहो देखो
दिल के रेशे भी टूट जाते हैं