कहानीसामाजिक
"काकी धोरां मैं जरख (एक जंगली जानवर) आ रह्यो है। तू कहे तो आज मुनिया नै स्कूल मैं छोड़ आऊं?" नानू पड़ोसिन काकी की किशोरी बेटी मुनिया को नख से शिख तक घूरते हुए बोला। उसे देख मुनिया सहम कर दो कदम पीछे हट गई।
"ना रै छोरा, चली जासी आपी, आपां कद ताईं लैरै लैरै फिरांगा (हम कब तक पीछे पीछे घूमेंगे)।" काकी ने चूल्हे की लकड़ी ठीक करते हुए शांत स्वर में कहा।
"पर काकी जरख तो जिनावर (जानवर) है, जिनावर गो के ठा कद आ जावै (क्या पता कब आ जाए)। मुनिया गो एकली स्कूल जाणो ठीक कोनी।" नानू ने एक कोशिश और की।
"बात तो थारी ठीक ही है छोरा। थम (रुक) जा ए छोरी।" काकी ने घर की गौशाला से हंसिया ला कर मुनिया की ओर बढ़ा दिया और बोली, "ओ ले ज्या, जिनावर गो के ठा कीं भेस मैं आज्यै।" काकी के भाव और हंसिये पर मुनिया की मजबूत पकड़ देख इस बार नानू सहम कर दो कदम पीछे हट गया।