कहानीलघुकथा
पुरुष गंध
बाबा ने रिक्शा बाहर खड़ा कर जैसे ही घर में प्रवेश किया, एक कमरे का वह छोटा सा घर अजीब सी महक से गंधा गया। कितना भी साबुन से मल मल कर नहा लें बाबा पर पसीने की ये कड़वी गंध उनके बदन से जाती ही नहीं। तब उसे प्रोफेसर सान्याल याद आते। बाबा और प्रोफेसर सान्याल हम उम्र मगर फिर भी कितने अलग अलग। कितना जंचते हैं प्रोफेसर सान्याल, तब उनमें से तो बाबा जैसी कड़वी गंध भी नहीं आती, बल्कि वे जब भी क्लास में पढ़ाने आते हैं पूरा क्लास रूम उसके पसंदीदा सेंट की भीनी भीनी सुगंध से महकने लगता है।
मगर फिर भी जाने क्यों वह कभी भी प्रोफेसर सान्याल के सानिध्य में उतनी सहज नहीं रह पाती जितना अपने बाबा के साथ रहती है। आखिर आज उसकी यह उलझन खुद प्रोफेसर सान्याल ने ही दूर कर दी जब उन्होंने स्टाफ रूम में बुला कर उसे समझाना चाहा कि उनके बदन से आती गंध पुरुष की गंध है पिता की नहीं।