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सोनू और मिन्नी - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कहानीअन्य

सोनू और मिन्नी

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  • 15 Min Read

एक था सोनू सियार। वह सुंदर वन में रहता था। सोनू बहुत महत्वाकांक्षी था वह अपनी वर्तमान स्थिति से खुश नहीं था। वह जंगल का राजा बनना चाहता था मगर उसमें जंगल के राजा वनराज से टकराने की हिम्मत न थी। उसे वनराज की ताकत का अंदाज़ा था। लेकिन वो कहते हैं न जहां चाह वहां राह। सोनू ने अपने राजा बनने का तरीका निकाल ही लिया। उसने जंगल में यत्र तत्र बिखरी मृतक जानवरों की हड्डियां इकट्ठी कर लीं और तालाब की ओर जाने वाले रास्ते पर उनसे एक चबूतरा बनाया और उसे मिट्टी से लीप कर सिंहासन जैसा बना लिया। अपने सिर पत्तियों से बना ताज रखा और कानों में भी हड्डियां कुंडल की तरह पहन लीं।
अब सोनू अपने खूबसूरत सिंहासन पर बैठ कर नये नवेले राज पाट का राजा बन गया।उस तालाब में पानी पीने आने वाले जानवरों की ड्यूटी थी कि वे अपने राजा सोनू को सलाम करते हुए कहें-
चांदी का तेरा चबूतरा सोने मढ़ा है
कानों में दो कुंडल, हमारा राजा बड़ा है
यह दोहा बोलने के बाद ही वे बेचारे जानवर पानी पीने के हकदार थे। यह बात अलग है कि सोनू की सत्ता सिर्फ़ छोटे छोटे जानवरों तक ही सीमित थी। बड़े जानवरों को आते देख वह खुद झाडियों में छिप जाया करता था।
जल्द ही सभी जानवर सोनू की हरकतों से परेशान हो कर वनराज के पास शिकायत ले कर पहुंचे। वनराज ने उन्हें अपने मंत्रीमंडल से सलाह कर मिन्नी लोमड़ी को समस्या का समाधान करने की जिम्मेदारी दे दी।
मिन्नी पानी पीने तालाब की ओर चली। उसे अपनी ओर आते देख सोनू ने उसे रोका और कहा, "कहां बढ़ी चली आ रही हो? इतना भी नहीं पता इस तालाब का स्वामी मैं हूं। तुम्हें इसका पानी पीने से पहले मेरी स्तुति करनी होगी।"
"मामा मैं बहुत प्यासी हूं अगर मुझे जल्द ही पानी न मिला तो मैं मर जाऊंगी। मैं आपकी स्तुति भी करूंगी पर कृपया पहले मुझे थोड़ा सा पानी पीने दो।" मिन्नी कातर स्वर में बोली।
"ठीक है, जाओ पहले पी लो मगर स्तुति तो करनी ही होगी।" सोनू ने कहा, वह जानता था मिन्नी वनराज की विश्वासपात्र है और इसे परेशान करना मतलब सीधे वनराज से दुश्मनी मोल लेना।
सोनू से इजाजत मिलते ही मिन्नी तालाब की और बढ़ी और पानी पीने लगी। छक कर पानी पीने के बाद वह yuq"धन्यवाद मामा" कह कर आगे बढ़ गई।
"अरे कहां जा रही हो? मेरी स्तुति करो।" सोनू ने सख्त स्वर में कहा।
"ओह! क्षमा करना मामा भुल्लकड़ स्वभाव की हूं भूल ही गई थी। अभी आपकी स्तुति गाती हूं।" कहते हुए मिन्नी आहिस्ता आहिस्ता चलती हुई सोनू से एक सुरक्षित दूरी पर जा कर खड़ी हो गई और सस्वर गाने लगी-
हड्डियों का तेरा चबूतरा और मिट्टी से लीपा है
कानों में भी हड्डियां तू मूर्ख बड़ा है
इतना सुनते ही सोनू मिन्नी पर झपटा मगर मिन्नी पहले से सावधान थी वह तेजी से दौड़ती हुई अपनी मांद में समा गई। पीछे पीछे सोनू ने भी घुसने की कोशिश की मगर मांद छोटी थी और वह मोटा तगड़ा। बीच में ही अटक कर रह गया, न अंदर घुस पा रहा था और न वापस बाहर नाकल पा रहा था। वह निकलने की जी तोड़ कोशिश कर ही रहा था कि वनराज के सैनिक शिकारी कुत्ते उसी तरफ आ गए। वे सोनू को टांग पकड़ कर खींचने लगे। सोनू से दर्द बर्दाश्त न हुआ तो वह चिल्लाया, "ए लोई टांगें खींच रहा कोई।"
"ओ मामा यूं खींचातानी न हो तो राजा बन बैठे कोई।" मिन्नी ने भी तुक मिलाते हुए जवाब दिया।
कुछ देर में तालाब किनारे का राजा वनराज के सैनिकों का शिकार हो गया और मिन्नी लोमड़ी कार्य के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने की खबर वनराज को देने दरबार की ओर चल पड़ी।

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Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत प्यारी रचना .! बचपन याद दिला दिया आपने...

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर, मनोरंजक रचना और सुन्दर सन्देश..!

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया सर

दादी की परी
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