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‘एक मिनट नानी, आप बताते-बताते ज़रा आगे चली गयी।’
‘अच्छा! हां शायद मैं मुलाकात तक चली गयी थी। वैसे मैं थी कहां?’
‘ परफॉर्मंस वाले दिन।’
‘ हाँ … कॉलेज का सेकंड ईयर। मेरी नृत्य कला के उन दिनों खूब चर्चे थे। कॉलेज में अनेक प्रोग्राम होते, जिसमे मेरा एक परफॉर्मंस तो तय ही था। कई जगहों से बुलावे भी आते, मेरे नृत्य को शाबाशी भी मिलती। पर एक दिन , स्टेज का एक हिस्सा कमजोर होने के वजह से वह टूट गया। जिसमें मैं गिर गयी और कमर के निचले भाग में चोट आ गयी। और तब से मेरा आधा शरीर काम करना बन्द कर गया। बस यही हुआ था।’
‘ हैं,,, क्या नानी। ठीक से बताओ ना।’
‘ अरे बताया तो अभी।’
‘ नही मिझे ठीक से बताओ।’
‘ कहो फिर क्या जानना है।’
‘ अम्म…. उस हादसे के वजह से आपका नृत्य हमेशा के लिए छूट गया। ये तो बुरा हुआ, और आप इन सब बातों को इतने आराम से बता रहे हो। क्या आप अवसाद में गए थे? और आपके दोस्त से कैसे मुलाकत हुई?’
‘ अरे इतने सारे प्रश्न। मैं एक एक करके बताती हूँ।’
‘ ठीक है।’
देखो कोई हादसा हमारे साथ होता है तो उसका एहसास हमेशा याद रहता है, लेकिन हम उसे प्राथमिकता ना दें तो उसे भुलाया भी जा सकता है।’
‘क्या मतलब?’
‘ मतलब मेरे साथ बुरा तो हुआ लेकिन उसकी टीस ज्यादा देर तक मेरे पास नही रही।’
‘ ऐसा क्यों? आपके दोस्त के वजह से ना।’
‘ हाँ ऐसा कह सकती हो। जब मैं सेकंड ईयर में थी तो उसने नया नया कॉलेज जॉइन किया था। वो मेरे से एक आध साल छोटा ही था मगर उसके व्यवहार और मैच्यूरिटी ने मेरा दिल जीत लिया। उसको यूँ तो किसी चीज में ज्यादा दिलचस्पी नही थी लेकिन फोटोग्राफी का काफी शौक था। इसी बहाने मैं उसे अपने शो में फोटो निकालने के लिया बुला लेती और एक दूसरे से हमारी मुलाकत भी हो जाती।
पर एक दिन स्टेज के ढह जाने से मुझे गम्भीर चोट आई। मुझे भर्ती कराया गया और फिर गहरे अवसाद में चली गयी, क्योंकि मेरे नीचे का हिस्सा पूरा पेरेलाइज़ हो गया था। काफी दिनों तक मुझे हॉस्पिटल में ही रहना पड़ा।’
‘ तो क्या आपके दोस्त आपसे मिलने के लिए आये?’
‘ हाँ वो आये। मुझे उम्मीद नही थी की वो आएंगे। उसने मुझे एक अल्बम भेंट की जिसमें मेरे शो की और नृत्य की विभिन्न तस्वीरें थी। पर वो तोहफा मुझे जरा भी पसन्द नही आया, क्योंकि एक ओर मेरा करियर बिल्कुल ही खत्म हो चुका था और एक ओर ये सभी तस्वीरें.., मैं उससे बहुत नाराज़ हुई और वहां से जाने के लिए कह दिया। उसके बाद से हम कभी नही मिले।’
'क्यों?'
‘ अ,,, यह मेरी ही गलती थी। काफी वक्त गुज़र चुका था अवसाद से मैं बाहर नही आ पा रही थी। क्योंकि मुझे चित्रकारी का शौक था तो मैंने एक दिन यूँ ही कुछ बनाने की सोची। वो अच्छा बना। पूरा दिन बैठे बैठे तो कुछ करना होता नही था तो मेने और चित्र बनाये, वो भी अछे बने। मुझे ये सब अच्छा लग रहा था। मेंने और कुछ बनाना चाहा तो मुझे वो अल्बम याद आई जो जाते जाते वो मेरे परिवार को थमा गया था। मेंने जब उसमें अपनी तस्वीरें देखी तो उसकी झलक ने उन पलों को एक नया रूप देने के लिए प्रेरित किया।
मेने अपनी तस्वीर को लिया और एकेक कागज पर उतारना शुरू कर दिया। उसे बनाती, मिटाती, सही करती। धीरे धीरे मेरा हाथ चित्रकारी में बैठ गया। फिर मेंने कैनवास पर उन्हीं चित्रों को एक नया रूप देना शुरू किया। लोगों के बीच में मेरी पहचान फिर बनने लगी। यहां तक की एक्सिबिशन में मेरी बनाई हुई तस्वीरें लगने लगी। ऐसा लगा की मुझसे एक हुनर छीन गया तो एक और हुनर मिल गया। इसी बीच मेंने उससे मिलने की सोची, मगर अफसोस की तब तक बहुत देर हो चुकी थी।’
‘ बहुत देर हो चुकी थी?’
‘ हाँ ,... इसीलिए वो एक दोस्त था और दोस्त ही रहा।’
‘ क्या इसका एहसास आपको तंग नही करता?’
नानी ने हँसतें हुए जवाब दिया
‘ नही बिलकुल भी नही। बल्कि उसके एक तोहफे ने मुझे जीने की नई उम्मीद दी। भले ही वो मेरे साथ ना हो लेकिन उसका एहसास हमेशा मेरे साथ मेरी बनाई हुई तस्वीरों में रहा है। हमे ऐसे ही एहसासों को प्राथमिकता देनी चाहिए, है ना।’
‘ हाँ… और चाहें जहां भी हों, उन्हें इस बात की भनक भी नही होगी
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ठीक है मैं अपने घर चलती हूँ, शाम को फिर दोबारा आउंगी।’
‘ अरे जरा रुको, ये आज कल के गानों में कुछ रखा ही नही। ये रेडियो बदल दो, आज मैं अपनी एक और पुरानी तस्वीर को आकार देने वाली हूँ।’
शिवम राव मणि