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मेरे अन्दर मैं कैद हूं - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मेरे अन्दर मैं कैद हूं

  • 189
  • 5 Min Read

मेरे अंदर में कैद हूं
जिसका चेहरा बिल्कुल अलग है।

वो बेड़ियों से बंधा है
अंधेरे में, सन्नाटे में पड़ा है
बदन उसका,
सुकून के लिए तड़प उठा है।
आंखों में उसके दरारें हैं
चेहरे पर सूखा पड़ा है।
उसकी आवाज़ बेजान होती जा रही है
मगर उसकी चीखें बार-बार उठती हैं
जब भी दर्द उसे छू जाता है।

जान नहीं है, लेकिन दर्द जान दे देता है
वो और कुछ कहे ना कहे
लेकिन अपना अहज़ान कह देता है।

वो बोलने को है,
सामने आकर कुछ कहने को है
इतना बेसब्र हुआ है कि
शैतान बन बैठा है।

उसकी खलबलाहट से
बेड़ियों की खनक
उसकी चीखों से बंध गई हैं।

जिदोजहद ऐसी है
कि बेड़ियां उसे छोड़ती नहीं
और वह बेड़ियों से रिहा होना चाहता है।
मेरे अंदर मैं केद हूं
जो सामने आकर
क्या कुछ नही कहना चाहता है।

अपने दर्द को रुलाना चाहता है
ज़िस्म से बंधी कड़ियों को दिखाना चाहता है
किसी ने आकर छुआ नही,
तो अपनी तन्हाई को‌ बताना चाहता है।

लेकिन वह हारकर
उन बेड़ियों से जूझकर
खुद में टूटा हुआ
हालातों से उखड़ा हुआ
अब एक अल्हड़ है
जिसका चेहरा बिलकुल अलग है।

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अजय मौर्य ‘बाबू’

अजय मौर्य ‘बाबू’ 3 years ago

Juda sa andaj, Badiya

शिवम राव मणि3 years ago

Shukriya

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब ??

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद मेम

Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 3 years ago

उम्दा कृति

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
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प्रपोजल
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