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"आदमी"
कविता
छुप कर वार न कर
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
आदमी की मौत मरा कुत्ता
जात आदमी के
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है
वह आदमी
आम आदमी बेजार-कृष्णाजाधव
धूप कभी ठंड सूखा कभी बारिश
नैया आज आदमी की
पल-पल तिल-तिल मरता है आदमी
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
दिल का बुरा नहीं बशर आदमी वक़्त का मारा है
औलाद की ख़ातिर सबकुछ कर जाता है आदमी
आदमी परेशान-सा रहता है
हवाले किसी के ना अपनी औक़ात कर
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
सुलझी हुई मिली थी बशर हयात आदमी को
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
*आदमी नामकी शय*
*ए'तिबार खुदपर ही रहा नहीं*
"ईमान आदमी का"
आदमी ने ज़हर घोला है
*ख़त्म आदमी की पहचान हो गई *
आदमी को आदमी हि रहनेदो
*खो जाता है आदमी*
छटपटाता रहता है आम इंसान
आदमी को आदमी नहीं क्या मज़ाक कहें
हरसू बेइंतहा रौशनाई है
सलीक़ा
आदमी मैं मरा हुआ हूँ
आदमी, आदमी रहा ही नहीं
आदमी ही आदमी के काम आता है
आदमी खुदा बनने से बाज नहीं आता
आदमी, आदमी की बू से परेशाँ है बहुत
बशर की औक़ात क्या है
बदल गए कल और आज
होगी इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर
खूबियाँ औरों की देख "बशर"
आदमियत खोने पर
सभी अकेले बेइंतिहा बेशुमार होते हैं
दूर खुद से भागता रहा आदमी
कहाँ गया आदमी
जानवर आदमी से प्यार करता है
आदमी
बोले कब
ये दौर अलग
आदमी परेशान रहता है
बेमिसाल है ये जात आदमी की
हयात का आदमी अज़ीम किरदार होता है
सोता ही नहीं है आदमी आठों पहर
खरा आदमी
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
खुदको जाना बना कलंदर है
कहानी
मन की शान्ति
आत्मसम्मान
अबे ये तो अंधा है
ड्राइवर
स्क्रीनशॉट
खफा आदमी
"खोया हुआ आदमी "
डर आजादी का
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