कहानीसंस्मरण
*यादों के झरोखे से*
*आत्म सम्मान*
ये बात सन 2010 की होगी ।मुझे अपने ममेरे भाई की बेटी की शादी में लखनऊ में अलीगंज के पास किसी गेस्ट हाउस में जाना था। कानपुर से मैं निकला तो इस हिसाब से था कि शाम 6 बजे तक विवाह स्थल तक पहुँच जाऊं।मुझे लखनऊ में बसों आदि की जानकारी न होने के कारण मैं चार बाग से एक प्राइवेट मिनी बस में बैठ गया जिसने करीब एक घण्टे बाद मुझे मोईबुल्लाहपुर स्टेशन के पास एक ऐसी जगह उतार दिया जहाँ काफी सन्नाटा था और कोई सवारी भी नहीं दिख रही थी।दिसम्बर के महीने की सर्दी थी और रात के आठ बजे रहे थे।मैं सूट बूट पहने असहाय सा खड़ा सोच रहा था कि ये कहाँ आ फॅसे? यहाँ तो कोई रास्ता बताने वाला भी नहीं दिख रहा है।बस वाले ने तो बताया था यहाँ से पांच मिनट का पैदल रास्ता है। मुझे दस पन्द्रह मिनट पैदल चलने में कोई परेशानी नहीं थी।पर जाएं तो किधर जायें? ये नही समझ आ रहा था। तभी मुझे साइकिल पर जाता एक आदमी दिखा। मैंने उससे बड़ी शराफ़त से पूछा भाई साहब मैंरीज हाल (मुझे नाम याद नहीं )किधर पड़ेगा ? उसने कहा "ये जंगल और रेल पटरी पार करके सड़क आएगी वहीं पर है"।मैंने जब उधर नजर दौड़ाई तो मेरा तो हाल बेहाल हो गया।उधर कोई कायदे का रास्ता भी नहीं दिख रहा था।और अंधेरा भी था।
मैंने उस साइकिल वाले से पूछा और कोई रास्ता नहीं है क्या ?वहाँ पहुचने का।उसने कहा "रास्ता तो है पर बहुत लंबा है करीब तीन चार किलोमीटर पड़ेगा।"मैं पसोपेश में पड़ गया अब क्या करूँ?साइकिल वाले ने बड़े अपने पन से कहा "बाबू जी आप परेशान न होइये बैठिये पीछे मेरी साइकिल पर मैं भी उधर ही जा रहा हूँ आपको छोड़ दूंगा।"
वह पचास की उम्र का रहा होगा और मेरा बजन भी 70 किलो से कम न था।मैंने कहा भाई साहब आपको बहुत दिक्कत होगी रास्ता भी खराब है।पर उसने कहा "बाबू जी आप उसकी फिकर मत करो, बैठो।"
परिस्तिथियों को देखते हुये मेरा उसकी बात मानने में ही हित था।अतः मैं उसकी साईकिल के कैरियर पर बैठ गया।अगर दिन होता तो एक मजे दार दृश्य था,एक गरीब प्रौढ़ आदमी की साइकिल के कैरियर पर एक सूट पहने पढ़ा लिख साहब बैठा है।और वह प्रौढ़ पूरी मेहनत से साइकिल चला रहा है।
किरीब 5,,7 मिंनट के रास्ते मे उससे जो बात चीत हुई उससे पता चला वह एक राज मिस्त्री है और आज उसको देर हो गई है वरना वह शाम 6 बजे तक घर पहुँच जाता है।मैंने भी उसे बताया कि मैं कानपुर से आ रहा हूँ।उसने कहा "बस वाले ने आपके साथ धोखा किया उसको आपको नहीं बैठाना चाहिये था।वहां के लीये दू सरी बहुत सी बसे चलती हैं जो आपको गेस्ट हाउस के दरवाजे पर ही उतारती।"
हिचकोले खाती साइकिल किसी तरह सड़क तक पहुँच ही रही थी कि साइकिल में पंचर हो गया।करीब 100 मीटर का फासला हम लोगों ने पैदल ही बतियाते हुये पार किया।
जब सड़क पर आये तो मेरे गेस्ट हाउस का बोर्ड दूसरी तरफ दिख रहा था।
मैंने साइकिल वाले से पूछा मित्र अब आप अपने घर कैसे जाओगे कहाँ है आपका घर ? मित्र मैने इसलिए उसे कहा कि अब तक वह मेरा दोस्त बन चुका था।मेरा मित्र शब्द उसको भी अच्छा लगा।
उसने बताया "मेरा घर यहाँ से तीन किलो मीटर दूर है।अगर कोई साधन बन गया तो साइकिल यहाँ एक परिचित के वहां रख कर चला जाऊंगा नही तो साइकिल के साथ पैदल निकल जाऊंगा।"
मैं अब उसकी स्तिथि देख कर यह सोच रहा था की इस आदमी की परेशानी का कारण तो मैं ही हूँ।मेरी सहायता करने के कारण ही तो इसकी साइकिल पंचर हुई और अभी आगे भी इसको कितना कुछ झेलना बाकी है।मैं उसके इस अहसान की भरपाई किस तरह करूं? ये सोचने लगा। पता नहीं क्यों मैंने जेब में हाथ डाल कर 50 रुपये का एक नोट निकाला और उस आदमी को देते हुये कहा भाई आपका अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा यह रख लो।उस आदमी ने बिना रुपये की तरफ देखे हुये कहा *"बाबूजी गरीब आदमी को इस तरह शर्मिंदा मत करिये"*।उसकी आवाज में कुछ ख़ास था।मुझे तुरत ही अपनी गलती समझ में आ गई मैंने कहा माफ करना दोस्त मुझसे भूल हो गई।पर मेरा मतलब ऐसा नहीं था।मैंने उसे गले से लगा लिया।और राम राम करके हम विदा हुये।
जब मैं गेस्ट हाउस पहुँचा तो सभी अपने मिल गये।तभी मेरे एक भतीजे ने मेरे कोट को देखते हुये कहा "चाचा जी ये चुना बालू कहाँ से कोट में लगा लाये"? उसने अपने रुमाल से मेरा कोट साफ कर दिया।
ये वही चुना बालू था जो उस मिस्त्री को गले लगाने से मेरे कोट में लगा था।
मैंने अपने भतीजे को ये बताया तो नहीं कि मेरे कोट पर यह चुने बालू के निशान काहे के हैं पर मैं सोंच रहा था अगर मेरे बस चलता तो ये निशान एक अनजान आदमी की नायाब इंसानियत के तौर पर जिंदगी भर सम्हाल कर रख लेता।
ये निशान तो मैं सम्हाल कर नहीं रख सका पर उस मित्र का *"बाबू जी आपको गरीब आदमी को इस तरह शर्मिंदा नहीं करना चाहिए* ये वाला वाक्य में ब्यवहार में आज भी ध्यान रखता हूँ।और कभी भी किसी गरीब आदमी की इंसानियत और सहायता को रुपये से अदा करने की गलती नहीं करता।
*यायावर गोपाल खन्ना*
जिंदगी का आशियाना इसी बालू और चूने से बनता है
Dhanyavad Ji ..!