कहानीलघुकथा
"टैक्सी... टैक्सी"
एक आदमी एक औरत और लड़की शायद उनकी बेटी होगी, कालेज के बाहर खड़ी टैक्सी को हाथ दिखाकर अपनी और आने का इशारा करते है।
टैक्सी वाला कार का शीशा नीचे करते हुए,
"जी साहब"
आदमी खिड़की में से देखते हुए,
"करोल बाग चलोगे?"
" बैठिये साहब"
सभी अंदर बैठ जाते हैं, टैक्सी वाला मीटर सेट करता है। और गाड़ी शुरू कर लक्ष्य की और चलने लगता है"
"शक्ल से तो अच्छे खासे लगते हो, फिर ये टैक्सी क्यों चला रहे हो"
"साहब पढ़ भी रहा हूँ एम बी ए का एग्जाम है, पापा की टैक्सी है अभी नया आया हूँ कुछ ही महीने हुए है।उन्हें गुजरे हुए और मुझे आये हुए...."
थोड़ी देर मौन रहकर आदमी पीछे बैठी लड़की से बात करते हुए,
" देख इसे ध्यान से, पढ़कर भी टैक्सी ही चला रहा है। खुद को देख हर बार नम्बर कम लाएगी तो इसी की तरह टैक्सी चलाएगी"
लड़की चुप थी। तभी ड्राइवर गाड़ी रोक देता है।
"साहब करोल बाग आगया"
बिल अदा करके वो सभी लोग टैक्सी से निकलने लगते है। तभी टैक्सी वाला बोलता है।
"साहब जरूरी नही की सब टैक्सी चलाये, कुछ लोग बिना पढ़े देश भी चला रहे हैं"
कहकर टैक्सी वाला चला जाता है, पर वह आदमी और औरत खड़े सोचते हैं कि क्या हर गलत बात की तुलना किसी गरीब से करना सही है! इस बार उन्हें अपने बोले का सबक एक मेहनती इंसान से मिल चुका था। - नेहा शर्मा
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