कवितालयबद्ध कविता
भूल गए हैं वह सारी बातें
जो तुम कहा करते थे।
थोड़े प्यार से, थोड़े दुलार से
मुझ को लेकर
अपनी बाहों में कहा करते थे।
चेतना जगाते और राह दिखाते,
सावधानियां बताते तो
गहराई की थाह समझाते थे।
थोड़ी बुराई हो या थोड़ी सी अच्छाई
इनमें फर्क जादू सा दिखाते थे।
कभी यूं ही सफलता की तुम तस्वीर बनाकर
उनमें मुझे रंग भरने के लिए कह जाते ।
कभी ऊंचाई को छूने की चाहत में
आकांक्षाओं का हावी होना,
तुम कैसे बतलाते थे।
कहां तुम स्वप्न को ख़्वाबों में दिखाते
आज स्वार्थ मन में आते हैं।
अब तो भूल गए हैं वह सारी दिशाएं
जहां पहले तुम्हारे हाथ ले जाते थे।
लेकिन आज है तो साथ है मेरी तृष्णा,
मेरा लोभ, मेरा व्यग्र।
जिससे पहले तुम मुझे अवगत कराते थे,
मुझे समझाते थे,
छुना नहीं, गुमराह होना नहीं,
मगर अफसोस
अब भूल गए हैं वह सारी बातें
जो तुम कहा करते थे।