कवितालयबद्ध कविता
ज़िन्दगी भी क्या है
जरा से फासलों में कई रंग लिए है
एक पल महरूम है
तो दूसरे ही पल बहती नीर है
पानियों सी बेरंग है
जिस ओर बहलाओ
उस ओर की तस्वीर है
वादियों में कभी बंजर
कभी बंजर में ताबीर है
ज़िन्दगी भी क्या है
बारिशों में सतरंग है।
भीगती हुई किरणों के
हर अंदाज़ पर
दिन का मिहिर है।
हवाओं सी मलंग है
कभी इधर डोलती है
तो कभी उधर डोलती है
हर दिशा की तहरीर है।
पक्षियों की चहचहाट है
कुदरत की आवाज़ है
जो सारे गैहान में गूंजती है
मगर अपने आप में ही
एक ज़ंज़ीर है,
ज़िन्दगी भी क्या है
जरा से फासलों में कई रंग लिए है।
शिवम राव मणि