कवितानज़्मलयबद्ध कविता
मै तो हूँ ही बेवकूफ
इन सब मामलों में,
प्यार के मामलों में,
लुभाने के मामलों में,
कोई रूठ जाए
तो उसे मनाने के मामलों में।
आए अजनबी कोई सामने
तो दो शब्द कहने में,
कोई पूछ ले कैसे हो भला
तो अपना हाल बताने में,
मै तो हूँ ही बेवकूफ
एक सपना संजोने में
कोई कश्ती आगे बढ़ाऊँ
तो कश्ती संभालने में
कभी हौसलो को भीतर जगाऊँ
तो हौसले जिन्दा रखने में
इन्तज़ार और ख़लिश
अजीब है ये चीजें
हमेशा नाकाम हो जाता हूँ
इन्हें अब्तल करने में।
मै तो हूँ ही बेवकूफ
अपनी बात को कहने में,
दबाए रखा हूँ बेसबर की चीजें
मजबूर हूँ अहजान को छुपाने में
खबर चाहो तो हर अखबार मे मिले
मेरी खबर अज़ाब के तरानो में
मै तो हूँ गुलाम किसी बे-अन्दाज़ का
मगर लोग तर्क लिए बैठे है,
मेरे ही बैंतो में।
मै तो, हूँ ही बेवकूफ
इस भीड़ से खुद को निकालने में
शिवम राव मणि©
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व की उलझनें.
धन्यवाद आपका