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कहीं आदत वो कभी आफत हो - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितागजल

कहीं आदत वो कभी आफत हो

  • 120
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बहर-122 22 122 22

कहीं आदत वो, कभी आफत हो
कि तुम्हें देंखे, कि ये शरारत हो

फ़ज़ल थी शामें, डुबे अर्क जैसे
चल और कहीं फिर कहीं नौबत हो

दिल के तासीर पर क्या फर्क क्या है
तबाह-सी यूं ही, रखी मूरत हो

बढ़े थे जब सुर्ख बदन में तर को
पिये थे माहुर, जैसे शरबत हो

ख़लिश की बात आम है बातो में
अब इन्हें भूलें, अब नज़ाफ़त हो
– शिवम राव मणि

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SHAKTI RAO MANI

SHAKTI RAO MANI 3 years ago

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