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कैसी यें शिकायतें - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कैसी यें शिकायतें

  • 184
  • 3 Min Read

कैसी ये शिकायतें?
जरा आज कहिए
दागी उतनी ही लगेगी
जितनी पहले मिली थी

कानाफूसियों का कहना
जरा आज समझिए
दिल पर उतनी ही बितेगी
जितनी पहले सुनी थी

शरीर का यूँ कराहना
जरा आज सहिए
पीड़ा उतनी ही होगी
जितनी पहले हुई थी

घटाओं की तरह झुकना
जरा आज दोहराइए
मजबुरियाँ उतनी ही होगी
जितनी पहले थामी थी

बंदिशों की ये दीवारें
जरा आज ढहा दिजिए
उंगलियाँ उतनी ही उठेंगी
जितनी पहले दिखी थी

कैसी ये विडंबना?
जरा आज देखिए
चोट उतनी ही पहुचेगी
जितनी पहले लगी थी
– शिवम राव मणि

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

प्रपोजल
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